Table of Contents
- 1 जैन धर्म का इतिहास
- 2 जैन धर्म के कुछ महत्वपूर्ण तीर्थंकर
- 3 महावीर की प्रमुख शिक्षायें
- 4 जैन धर्म कितने प्रकार के होते है?
- 5 जैन साहित्य (आगम)
- 6 सूत्र साहित्य
- 7 जैन धर्म में ब्राह्मण साहित्य
- 8 जैन धर्म के सूत्र साहित्य में 6 भाग हैं
- 9 जैन कल्पसूत्र:
- 10 जैन धर्म के सिद्धांत:
- 11 जैन धर्म के इतिहास से जुड़े महत्वपूर्ण FAQs
जैन धर्म का इतिहास
जैन धर्म का इतिहास अनेक धार्मिक संप्रदायों के समकालीन हैं जिनका उदय ईसा-पूर्व छठी सदी के उत्तरार्द्ध में मध्य गंगा के मैदानों में हुआ। जैन धर्म का इतिहास के इस युग के आसपास 62 धार्मिक संप्रदायों का उदय हुआ। जिनमें से जैन धर्म का भी उदय इसी सदी के आसपास माना जाता हैं। जैन धर्म का उदय एक शक्तिशाली धार्मिक सुधार आंदोलनों के रूप में इनका उत्थान हुआ। जैन धर्म का इतिहास में उस सदी में धार्मिक सुधान आंदोलन में बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभायी। जैन धर्म में कुल 24 तीर्थंकर हुए हैं (नियम बनाने वाला) ऐतिहासिक तौर पर 23 वें – पार्श्वनाथ तथा 24 वें – महावीर स्वामी के प्रमाण मिलते हैं।
जैन धर्म के कुछ महत्वपूर्ण तीर्थंकर
1 – आदिनाथ/श्रषभनाथ (प्रतीक – बैल)
23 वें पार्श्वनाथ (प्रतीक – सर्प (काशी के शासक के पुत्र थे इनके अनुयायी 4 व्रतों का पालन करते थे)
24 वें महावीर स्वामी (प्रतीक – सिंह)
महावीर की प्रमुख शिक्षायें
- महावीर की शिक्षाओं का मुख्य उद्देश्य भी मौक्ष या निर्वाण की प्राप्ति है। लेकिन जैन धर्म में निर्वाण के लिए कठोर तपस्या एवं शरीर त्याग को अनिर्वाय माना गया है ( सल्लेखना)
- बौद्धो के विपरीत महावीर श्रृष्टि के कण में आत्मा की उपस्थिति को स्वीकार करते हैं तथा शृष्टि को शाश्वत मानते हैं साथ ही बुद्ध समानता एवं कर्म फल को पुर्नजन्म का कारण मानते हैं,
- जैन धर्म में त्रिरत्न के आचरण से मौक्ष की प्राप्ति हो सकती है
जैन धर्म के त्रिरत्न कौन से हैं?
(1) सम्यक दर्शन – तीर्थंकरों के उपदेश
(2) सम्यक ज्ञान – जैन धर्म के सिद्धांत का उल्लेख – स्यादवाद/ अनेकांतवाद/सप्रमंत्रीवाद
(3) सम्यक चरित्र – पांच महावृत्त या अनुव्रत का पालन , ब्रहमचर्य
- महावीर ने भी वर्ण व्यवस्था एवं जाति व्यवस्था की आलोचना की तथा वैदों को अपौरूषय नहीं माना , (लेकिन बुद्ध की तरह प्रखर शब्दों में नहीं)
- अंधविश्वास एवं कर्मकाड़ का विरोध किया।
- दया, करुणा, साहिष्णुता, साधु संतो व बड़ो का सम्मान, समानता आदि को उपदेशों में महत्व दिया।
महावीर को विभिन्न नामों से जाना जाता है जैसे –
- महावीर(पराक्रमी)
- जिन (विजेता)
- निर्ग्रन्थ(बन्धनों से रहित)
- अर्हत (योग्य)
जैन धर्म का इतिहास में महावीर के समय मगध, वज्जि, वत्स , काशी इत्यादि राज्यों ने जैन धर्म को संरक्षण प्रदान किया। महावीर के पश्चात नंदवंश, मौर्य वंश (चन्द्रगुप्त-समाप्ति शासक) चेदी वंश(कलिंग) , राष्ट्रकुट वंश एवं सोलंकी वंश के कुछ शासको ने संरक्षण प्रदान किया।
जैन धर्म कितने प्रकार के होते है?
- तीसरी सदी BC में जैनग्रंथों में चंद्रगुप्त मौर्य के शासनकाल में एक अकाल की चर्चा हैं, अकाल के दौरान भद्रबाहु के नेतृत्व में कुछ भिक्षु पाटलीपुत्र में रह गये। पाटलीपुत्र में रहने वाले भिक्षुओं ने नियमों में उदारता बरती । इसी मुद्दे को लेकर पाटलीपुत्र में प्रथम जैन संगति का आयोजन हुआ और जैन धर्म 2 संप्रदायों में विभाजित हुआ।
1- श्वेताम्बर (स्थूलभद्र) – वस्त्र धारण करते हैं।
2- दिगाम्बर (भद्रबाहु) – वस्त्र धारण नहीं करते हैं।
श्वेताम्बर (स्थूलभद्र) संप्रदाय की विशेषताएँ:
- वस्त्र – श्वेत वस्त्र
- महिलाये – मोक्ष प्राप्त कर सकती है
- भोजन – कैवल्य (पूर्ण ज्ञान) के पश्चात् भोजन कर सकते हैं
- उपसंप्रदाय- मूर्तिपूजक, स्थानवासी, तेरापंथी
दिगाम्बर (भद्रवाहु) संप्रदाय की विशेषताएँ:
- वस्त्र धारण नहीं
- मौक्ष प्राप्त नहीं कर सकते
- भौजन नहीं कर सकते
- उपसंप्रदाय – बिसपंथी, समैयापंथी
जैन धर्म का इतिहास में छठी सदी ईशापूर्व में गुजरात के बल्लभी में जैन धर्म से सम्बंधित एक और संगति का आयोजन तथा जैन धार्मिक साहित्य को अंतिम रुप दिया गया।
जैन साहित्य (आगम)
- जैन धर्म का इतिहास में ‘जैन साहित्य’ को ‘आगम’ कहते हैं
- दिगम्वर संप्रदाय वर्तमान साहित्य को महत्व नहीं देते हैं इनका मानना हैं कि महावीर की शिक्षायें (पुल्वो) के रुप में संकलित थी जोकि नष्ट हो गयी।
आगम-12 अंग 12 उपांग छेदसूत्र मूलसूत्र
- ये साहित्य प्राकृत (अर्द्धमागधी भाषा) में संकलित थे
जैन धर्म से सम्बंधित प्रमुख पहाड़ियाँ
- कर्नाटक – चंद्रगिरी पहाड़ी
- उड़िसा – खंडगिरि , उदयगिरी
- राजस्थान – अबुदृहे गिरि (माउंट आबु)
- गुजरात – शत्रुंयगिरि
- झारखंड – पासरनाथ की पहाड़ी
सूत्र साहित्य
इसे वेदांग कहा गया है (वेदों का अंग) तता उपनिषद को वेतांत (वेदों के अंत) कहा गया हैं।
जैन धर्म में ब्राह्मण साहित्य
- वैदिक साहित्य।
- सूत्र साहित्य – वैदिक साहित्य को समझने के लिए इसकी रचना की गयी।
जैन धर्म के सूत्र साहित्य में 6 भाग हैं
- शिक्षा – उच्चारण
- कल्प – नियमों का संकलन
- व्याकरण – नियम – पाणिनी (अष्टाध्यायी)
- छन्द – गायन
- निरुक्त – उत्पत्ति – यास्क (निरुक्त)
- ज्योतिष – मुहुर्त
जैन कल्पसूत्र:
कल्पसूत्र नामक जैनग्रंथों में तीर्थंकरों का जीवनचरित का वर्णन मिलता है तथा भद्रबाहु कल्पसूत्र के रचयिता माने जाते हैं।
- धर्म सूत्र – राजनैतिक,सामाजिक कर्त्तव्य/नियम
- ग्रहसूत्र – पारिवारिक यज्ञ, संस्कार का उल्लेख
- श्रोत सूत्र – वैदिक यज्ञ के नियम
- शुल्क सूत्र – यज्ञ वेदी के निर्माण से संम्बधित नियम
जैन धर्म के सिद्धांत:
जैन धर्म में कुल पांच प्रमुख व्रत हैं:
- अहिंसा- हिंसा नहीं करना
- अमृषा- झूठ न बोलना
- अचौर्य- चोरी नहीं करना
- अपरिगृह- संपत्ति अर्जित नहीं करना
- ब्रह्मचर्य- इंद्रिय निग्रह करना
कहा जाता हैं कि ये ऊपर के चार व्रत पहले से ही चले आ रहे पांचवा व्रत महावीर स्वामी ने जोड़ा हैं।
जैन धर्म के इतिहास से जुड़े महत्वपूर्ण FAQs
प्र0 1- जैन धर्म में किसकी पूजा करते हैं?
उ0- जैन धर्म के लोग 24 वें तीर्थंकर भगवान महावीर की प्रतिमा की पूजा करते हैं।
प्र0 2- जैन धर्म का संस्थापक कौन थे?
उ0- जैन धर्म का संस्थापक ऋषभ देव को माना जाता है। ऋषभ देव जैन धर्म के पहले तीर्थंकर थे और ये भारत के चक्रवर्ती सम्राट भरत के पिता भी थे.
प्र0 3- जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर कौन थ?
उ0- जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर महावीर स्वामी हैं। इन्होंने 5 वें व्रत व्रहम्चर्य को जोड़ा। इससे पहले जैन धर्म में 4 व्रत ही प्रचलित में थे।
प्र0 4- जैन धर्म का सबसे महत्वपूर्ण ग्रंथ कौन सा है?
उ0- जैन धर्म के सबसे महत्वपूर्ण ग्रंथ आदिपुराण और महापुराण माने जाते हैं।
Final Words-
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