अगर आप बौद्ध धर्म का कालक्रम या बौद्ध धर्म का इतिहास गुगल या यूट्यूब पर सर्च कर रहे हैं तो आज की इस पोस्ट में मैंने आपको बौद्ध धर्म का इतिहास विल्कुल डिटेल्स में बताया हैं। इस पोस्ट में बौद्ध धर्म का उदय, बौद्ध धर्म का साहित्य, बौद्ध धर्म का सामाजिक जीवन, बौद्ध धर्म का धार्मिक जीवन और बौद्ध धर्म का पतन तक सबकुछ विल्कुल आसान भाषा में बताया गया हैं, जोकि किसी भी परीक्षा के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण साबित होगा।
Table of Contents
बौद्ध धर्म का कालक्रम: बुद्ध काल, सूत्रकाल या महाजनपद काल
बौद्ध धर्म का कालक्रम 600 BC – 321 BC तक माना जाता हैं। बुद्ध काल सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और धार्मिक दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण माना जाता हैं क्योंकि इसमें अधिकतर धार्मिक परिवर्तन हुए और कई धर्मों का उदय भी हुआ। जिसमें बौद्ध धर्म भी शामिल हैं। यह काल बौद्ध धर्म और जैन धर्म की लोकप्रियता के कारण ही इतना ज्यादा लोकप्रिय हुआ। इस काल में परिवर्तन के साथ साथ निरंतरता के तत्व भी दिखाई पड़ते हैं। इस पूरे लेख में आपको बुद्धकाल के प्रत्येक पहलू के बारे में विस्तृत जानकारी दी गई हैं।
बौद्ध काल में अर्थव्यवस्था:
इस काल में अर्थव्यवस्था के क्षेत्र में कई महत्वपूर्ण परिवर्तन दिखाई पड़ते है कृषि के क्षेत्र में लोहे का बड़े पैमाने में उपयोग, दासों को कृषि में लगाये जाने के प्रमाण, धान के रोपाई के प्रमाण इत्यादि। इन परिवर्तनों ने कृषि के क्षेत्र में आधिशेष उत्पादन का आधार तैयार किया।
- शिल्प के क्षेत्र में विशेषीकरण एवं शिल्प से सम्बन्धित संगठनों (Guild) की जानकारी मिलती है। जैसे- वैशाली में एक साथ सैकड़ो बर्तनों की दुकानो के प्रमाण ,बनारस में हाथी दांत पर काम करने वाले शिल्पियों के गलियों का उल्लेख साहित्य से प्राप्त होता हैं।
- व्यापार के क्षेत्र में भी अपेक्षाकृत बड़े पैमाने पर आंतरिक एवं बाह्य व्यापार के प्रमाण मिलते हैं। जैसे- उत्तर व मध्य भारत के कई स्थलों से NBPW नामक बर्तन के साक्ष्य तथा जातक साहित्य से दक्षिण पूर्व एशिया से व्यापार के प्रमाण मिलते हैं।
- इस दौर में सिक्कों के साक्ष्य भी मिलने लगते है। इन सिक्कों को पंचमार्क या आहत सिक्के कहते थे औ इस पर लेख उत्कीर्ण नहीं होता था। अर्थात आकृतियाँ होती थी। (चाँदी एवं ताँबे के सिक्कों के प्रमाण मिलते हैं)
- हड़प्पा के पश्चात् दूसरी बार शहरीकरण के साक्ष्य मिलते हैं। कृषक एव शिल्प अधिशेष, व्यापार, राज्यो की स्थापना, धार्मिक गतिविधियां इत्यादि ने शहरीकरण को आधार प्रदान किया।
द्वितीय शहरीकरण का चर्मोत्कर्ष मोर्योत्तर काल में दिखाई पड़ता हैं।
बौद्ध काल में राजनीति:
राजनैतिक दृष्टकोण से यह काल भी विशेष महत्व रखता हैं और राज्य के सभी तत्व इस काल में दिखाई पड़ते हैं।
- इस काल में दो प्रकार की राजनीतिक व्यवस्था की जानकारी मिलती है, राजतन्त्रात्मक एवं गणतंत्रात्मक। राजतंत्रात्मक अधिक लोकप्रिय था और समकालीन साहित्य में 16 महाजनपदों की जानकारी मिलती हैं। जिनमें अधिकाशत: राजतंत्रात्मक थे (अंगुत्तर निकाय ,भगवती सूत्र)
- वेतनभोगी अधिकारियों की श्रेणी की जानकारी मिलती है जैस-महामात्र (अधिकारी),
- राजस्व प्रशासन के भी प्रमाण मिलते है। जैसे-बलिसाधक ,शुल्काध्यक्ष
- बलिसाधक– भू-राजस्व संग्रह करने वाला
- शुल्काध्यक्ष – चुंगी राजस्व लेने वाला
पहली बार न्यायिक ढ़ाचे की जानकारी तथा दीवानी एवं फौजदारी विवादों के साक्ष्य मिलते हैं।
16 महाजनपद एवं उनकी राजधानी
महाजनपद राजधानी
कम्बोज – राजपुर/हाटक
गंधार – तक्षशिला
कुरु – इन्द्रप्रस्थ
पंचाल – अहिच्छेत्र/कांपिल्य
मत्स्य – विराटनगर
शूरसेन – मथुरा
अवन्ती – उज्जैन/माहिष्मति
चेदि – सोत्थिवती
अस्मक – कौटिल्य
वत्स – कोशाम्बी
कोसल – श्रावस्ती, साकेत
काशी – वाराणसी
मगध – राजग्रह, पाटलीपुत्र, वैशाली
अंग – चम्पा
मल्ल – पावा, कुशीनारा
वज्जि – 8 गणो का संघ , बुध्द काल में सर्वाधिक शक्तिशाली गणराज्य वैशाली के लिच्छिवी थे
मल्ल और बज्जि गणतंत्र था
इनमें मगध,अवन्ति, वत्स, कोसल सबसे शक्तिशाली थे।
16 महाजनपदों में 4 महाजनपद सर्वाधिक शक्तिशाली थे और इनके मध्य सर्वोच्चता को लेकर टकराव हुआ अन्तत मगध को सफलता मिली।
मगध पर शासन करने वाले प्रमुख वंश:
- हर्यकवंश (544 ई0 – 412 ई0 )- बिम्बिसार, अजातशत्रु, उदयन
- शिशुनाग वंश (412 ई0 – 344 ई0)
- नंद वंश (344 ई0 – 322 ई0)- महापदमानंद, घनानन्द
मगध की सफलता या विशाल साम्राज्य की स्थापना के कारण:
- अपेक्षाकृत योग्य, साहसी एवं चालाक , शासक के कार्य
- मगध का आर्थिक आधार सशक्त था।
- मगध की राजधानियां प्राकृतिक दुर्ग जैसी थी या प्राकृतिक पहाड़ियों से नदियों से घिरी थी।
- लोहे की खानों पर नियत्रंण
- उ0-पू0 भारत से नियमित तौर पर हाथियो की आपूर्ति
- सर्वप्रथम गंगा घाटी में सिक्कों का प्रचलन । इससे राज्य को विशेषतौर पर फायदा हुआ।
- विदेशी आक्रमण- ईरानी अक्रमण – 516 ई0 में ईरानी शासक डेरियस का आक्रमण
- उ0-पू0 भारत के एक बड़े भू भाग पर लगभग 2 सदियो तक लम्बे समय तक कब्जा।
- उ0-प0 भारत में खरोष्टि लिपि का प्रचलन
- मौर्यकालीन कला पर भी ईरानी कला का कुछ प्रभाव देखा जा सकता हैं।
- सिकन्दर का आक्रमण
मैसिडोनीय का शासक और 326 ईशापूर्व में इसने भारत पर आक्रमण किया तक्षशिला के शासक आभ्भी ने सिकन्दर की अधीनता स्वीकारी वही झेलम नदी के साथ पोरस का राज्य था और उसने साहस के साथ सिकंदर का प्रतिरोध किया। इस अभियान का विभिन्न कारणों से भारती इतिहास में महत्व हैं
– भातीय इतिहास में तिथि क्रम के निर्धारण में।
उ0-प0 भारत तथा मध्य व प0 एशिया एवं यूरोप के बीच व्यापारिक मार्ग व संपर्क के दृष्टिकोण में।
- सिकंदर के पश्चात् भी यूनान एवं भारत के बीच संपर्क की प्रक्रिया जारी रही इसने कला एवं संस्कृति को प्रभावित किया।
- सिकंदर के साथ आये विद्धान उ0-प0 भारत के सांस्कृतिक व सामाजिक जीवन की जानकारी देते हैं।
- सिकंदर ने उ0-प0 भारत में सिकंदरया तथा बाउकेफाल नामक शहर की स्थापना की
बौद्धकालीन समाज
समकालीन साहित्य में विभिन्न वर्णों के कर्त्तव्यों तथा आपातकाल में इन वर्णों के द्धारा अपनाये जाने वाले कार्यो का भी व्यवस्थित उल्लेख मिलता हैं।
- इसी दौर में जाति प्रथा का भी प्रचलन , यह जन्म आधारित तथा अन्तर्जातीय विवाह यथा खानपान पर प्रतिबन्ध की भी जानकारी मिलती हैं।
- महिलाओं के जीवन में भी गिरावट के संकेत मिलते है जैसे – उपनयन संस्कार से महिलाओं को रोका गया तथा बाल विवाह के भी प्रमाण मिलते हैं। खानपान, मनोरजन इत्यादि पूर्ववर्ती काल की तरह हालांकि बौद्ध एवं जैन धर्म के प्रभाव में अंहिसा व शाकाहार का मह्तव बढ़ा होगा।
- ब्राहम्ण, शिक्षा से सम्वंधित गतिविधियां दैनिक काल की तरह वही दूसरी तरह बौद्ध एवं जैन मठ भी शिक्षा के रुप में दिखाई पड़ते हैं।
- आश्रम, पुरुषार्थ, संस्कार , गोत्र इत्यादि को समकालीन साहित्य में न केवल व्यवस्थित रुप दिया गाया बल्कि इसके प्रचलन के भी प्रमाण मिलते है र इसके अनुपालन को सुनिश्चित करने की कोशिश भी की गयी। वैदिक संस्कृत के साथ-2 लोकिक संस्कृत एवं प्राकृत भाषा का भी समाज में प्रचलन
बौद्धकालीन धर्म
असनातनी सम्प्रदाओं के उदय के कारण
आर्थिक परिवर्तन में ब्राहम्णवादी मान्यताओं का बाधक सिद्ध होना जैसे- छुआछूत से शहरीकरण की प्रक्रिया में बाधा , पशुवलि से खेती को नुकसान, विभिन्न प्रकार के कर्मवादों व दान दक्षिण से, व्यवसायिक गतिविधियों को भी नुकसान । इसके विपरित बुद्ध एवं महावीर के द्वारा समानता व अहिंसा के उपदेश तथा प्रत्येक प्रकार के भेदभाव , कर्मकाण्डो की आलोचना इत्यादि कारणों से लोगों का इन धर्मों के प्रति आकृषण बढ़ा।
वर्ण व्यवस्था एवं ब्राह्मणों की श्रेष्ठाओं को लेकर भी समाज के विभिन्न वर्गों में असंतोष ता विभिन्न कारणों से क्षत्रिय, वैश्य एवं शुद्र वर्ण के द्रारा ब्राम्हणों की श्रेष्ठा को चुनोती तथा असनातीय संप्रदायों के उदय का यह भी एक महत्वपूर्ण कारण बना।
राजनैतिक कारणों से भी समकालीन शासकों ने भी संरक्षण प्रदान किया, क्योंकि व्राहमणवादी कर्मकाण्डो राज्यों को आर्थिक नुकसान हो रहा था।
वैचारिक स्तर पर देखे तो उपनिषदों के माध्यम से कर्मकांडो को वैदिक काल से ही चुनौती मिलनी शुरु हो गयी थी। बुद्ध और महावीर की शिक्षायें उसी प्रक्रिया की अगली कड़ी थी।
गौतम बुद्ध की जीवन परीचय
- जन्म – 563 ई0
- स्थल – लुंबिनी (कपिलवस्तु गणराज्य)
- पिता – शुद्धोदन (शाक्य कुल (गण) के प्रमुख )
- माता – महामया -स्पवप्न – कमल,सरोवर,हाथी
- मौसी – गौमती ( बुद्ध का पालन पोषण किया)
- बचपन का नाम – यशोधरा, गोपा, बिम्बा
- पुत्र – राहुल
- 4 घटनाओं से जीवन में परीवर्तन- वृद्ध व्यक्ति को देखना , बीमार व्यक्ति को देखना , मृत व्यक्ति को देखा , प्रसन्न सन्यासी को देखा
- सारथी/ साथी – चानन
- घोड़ा – कंथक
- ग्रह त्याग किया – 29 वर्ष की उम्र (घोड़ा , सारथी ,रथ) – इस घटना को महाभिनिष्क्रमण कहते है।
- प्रथम गुरु – अलारकलाम बिद्धान (वैशाली)
- दूसरे गुरु – रुद्रकरामपुत्र विद्वान (राजग्रह)
- बोधगया(उरुग्वेला) – पांच सहयोगियों के साथ कठोर तपस्या
- सुजात नामक महिला ने – बुद्ध को भोजन कराया
- पीपल वृक्ष(अखवत्थ) के नीचे – ध्यान में बैढे – 7 सप्ताह के पश्चात् ज्ञान की प्राप्ति
- मारदेव ने – बुद्ध की तपस्या को भंग करने की कोशिश की
- प्रथम उपदेश – शारनाथ(5 सहयोगियों को) – इस घटना को धर्मचक्रप्रवर्तन कहा गया हैं।
बुद्ध की प्रमुख शिक्षायें क्या हैं।
उददेश्य: बुद्ध की शिक्षाओं का प्रमुख उददेश्य हैं, दुखों से मुक्ति अर्थात निर्वाण की प्राप्ति अर्थात मौक्ष की प्राप्ति अर्थात संसार से आवागमन से मुक्ति बुद्ध की शिक्षाओं पर अमल करने से इसी जीवन में दुखों से मुक्ति संभव हैं इसके लिए शरीर का त्याग आवश्यक नहीं हैं। इसी संदर्भ में बुद्ध ने 4 आर्य सत्य की चर्चा की हैं
बौद्ध धर्म के चार सत्य क्या हैं।
- संसार में दुख ही दुख हैं
- दुख का कारण है त्रसना या इच्छा या लालसा या अशक्ति (लगाव)
- दुखों से मुक्ति की ओर ले जाने वाला मार्ग (आष्टांगिक मार्ग/मध्यम मार्ग)
- अष्टांगिक मार्ग को ही बोद्ध ग्रंथो में शील, समाधि और प्रज्ञा कहा गया हैं
- दूसरे और तीसरे आर्य सत्य के संदर्भ में बुद्ध ने प्रतित्यसमुत्पाद – कार्य का सिद्धांत भी कहते हैं।
- बुद्ध ने कठोर शब्दों में कर्मकाडं , अंधविश्वास इत्यादि की आलोचना की तथा वेदों को भी अपौरुषेय नहीं माना ।
- बुद्ध ईश्वर एवं आत्मा को नहीं मानते थे लेकिन पुर्नजन्म को मानते थे। सांसार को क्षण भंगुर मानते थे
- बुद्ध ने भिक्षुओं के लिए दसशील और उपासको के लिए पंचशील का उपदेश दिया। इसके अतिरिक्त बुद्ध ने मित्रता, करुणा, दया जैसे गुणों के विकास पर भी बल दिया
- बुद्ध ने जन्म के आधार पर प्रचलित वर्ण एवं जाति व्यवस्था की कठोर शब्दों में आलोचना की।
- समाज के प्रत्येक वर्ण के साथ समान वय्वहार यहां तक की बड़ो एवं गुरुजनो के प्रति दया की बात कही।
- महिलओं के साथ भी समानता का उपदेश दिया।
- बुद्ध ने धर्म के प्रचार के दौरान कपिलवस्तु , मगध , कौसल , वैशाली, इत्यादि क्षेत्रो की यात्राएं की।
- बुद्ध ने सर्वाधिक उपदेश कौसल प्रदेश में दिया।
- कौसल प्रदेश में कौसल नरेश प्रसेनजित ने पूर्वाराम नामक बिहार तथा अनाथपिदंक ने जेतवन नामक विहार बौद्ध संग को दान में दिया था कौसल प्रदेश में अँगुलीमान डाकु ने बौद्ध धर्म को ग्रहण किया था।
- बुद्ध के प्रमुख शिष्य – आनंद, उपाली, सारीपुत्र, मुगलान, महाकश्यप इत्यादि
- बुद्ध ने अपने परिवार के सदस्यों गौतमी, यशोधरा , राहुत इत्यादि को भी बौद्ध धर्म में दीक्षित किया था।
- 483 ईशापूर्व में कुशीनगर में सा वक्ष के नीचे शरीर का त्याग किया इस टना को महापरिनिर्माण कहते हैं। इससे पूर्व पावा नामक स्थान पर बुद्ध के एक शिष्य चुन्द/कुन्द ने बुद्ध को भोजन कराया जिसके पश्चात् बुद्ध बीमार हुए थे।
- शरीर त्याग के बाद बुद्ध की अस्थियों को 8 भागों में विभाजित किया गया था।
बुद्ध की संगीति
प्रथम बौद्ध संगीति
- 0 – 483 BC
- अध्यक्ष – महाकश्यप
- कहां हुआ – राजग्रह
- शासक – अजातशत्रु
- आनंद – सुतपिटक
- उपालि – विनयपिटक
द्वितीय बौद्ध संगीति
- आयोजन – 383 BC
- अध्यक्ष – मोग्गलिपुत्र तिस्स
- स्थान – पाटलिपुत्र
- शासक – अशोक (मौर्य वंश0
- निष्कर्ष – अभिधम्मपिटक का अंतिम तौर पर गायन
चतुर्थ बौद्ध संगीति
- आयोजन – 1 C.B.C
- अध्यक्ष – वसुमित्र
- स्थान – कश्मीर ( कुशाण वंश)- इस संगीति में हीनयान, महायान मे बंटा
- पुस्तक – विभाशा शास्त्र नामक पुस्तक की रचना हुई
बौद्ध धर्म के सम्प्रदाय और उप सम्प्रदाय
हीनयान( निम्न मार्ग) महायान(उन्नत/कठोर मार्ग)
1 – अर्हतया निर्वाण की प्राप्ति। 1 – अद्रश – बोधी सत्व अर्थात निर्वाण
2 – मूर्तिपूजा, तीर्थयात्रा दोनों को नहीं मानता 2- प्राप्ति के बाद दूसरो के मुक्ति में सहयोग करना।
3 – इसके ग्रन्थ पाली भाषा मैं हैं।
मैत्रेय बुद्ध को हीनयान, महायान दोनों मानते है
हीनयान के कुछ प्रमुख उपसम्रदाय है। जैसे – वैभाषिक , सौत्रंतिक
महायान के प्रमुख उपसंप्रदाय है। जैसे 1 – माध्यामिक या सून्यवाद/ (नार्गाजुन) 2 – योगाचार या निज्ञानवाद (असंग)
8 वीं सदी में वज्रयान नामक संप्रदाय भी लोकप्रिय हुआ । इसमें तांत्रिक विधि से मौक्ष पर बल दा गया हैं। जैसे – विहार के विक्रमशीला
बौद्ध धर्म की लोकप्रियता के कारण
- धर्म का सरलीकरण तथा कर्मकाण्ड रहित धर्म एवं सामाजिक आर्थिक असमानता पर प्रहार करने वाले पेशों के कारण बोद्ध धर्म की लोकप्रियता तेजी से बढ़ी।आम लोगों की भाषा में उपदेश (पाली भाषा)
- तार्किक तरीके से एवं धैर्य पूर्वक बुद्ध के द्वारा अपने विचारों को रखना।
- राज परिवार से बुद्ध का जुड़ा होना
- समकालीन महत्वपूर्ण शासको जैसे – विम्विसार , अजातशत्रु प्रसेनजित इत्यादि के द्वारा बोद्ध सरंक्षण।
- बुद्ध के जीवनकल में ही संघ की स्थापना संगठित व अनुशासन तरीके से धर्म का प्रचार हुआ
- विभिन्न बोद्ध संगीतियों के माध्यम से बुद्ध के उपदेशों एवं नियमों का संकलन तथा विवादों का समाधान
- बुद्ध के पश्चात् कई शक्तिशाली शासकों के द्रारा संरक्षण व प्रचार जैसे मौर्य शासक अशोक, कुषाण शासक कनिष्क तथा हर्षवर्धन
- बुद्ध के पश्चात् कई महत्वपूर्ण विद्धानो ने बुद्ध की शिक्षाओं का प्रसार किया जैसे – बुद्ध घोष , बुद्ध दत्त, धम्मपाल, नागर्जुन आदि
- विभिन्न शैक्षणिक संस्थाओं विशेषकर नालंदा विश्वविधालय के द्वारा बुद्ध की शिक्षाओं का प्रचार-प्रसार जारी रहा।
बौद्ध धर्म के पतन के कारण
- बौद्ध धर्म में भी उन कुरीतियों का प्रवेश हुआ, जिनके विरुद्ध बुद्ध ने आवाज उठाई थी जैसे – कर्मकाण्ड , मूर्तिपूजा, अंधविश्वास, आदि।
- ब्राहम्ण धर्म के भीतर भागवत संप्रदाय ने क्रमश: को महत्व दिया और भक्ति के माध्यम से समाज के सभी वर्गो के मौक्ष की बात कही।
- विभिन्न संप्रदायो, उपसंप्रदायों में विभाजित होने के कारण भी बुद्ध धर्म का पतन हुआ।
- कई शासको का बोद्ध विरोधी दृष्टिकोण जैसे- हुणशासक मिहिरकुल, (बांगाल) के शासक शशांक इत्यादि।
- गुप्तकाल एवं उसके पश्चात् बड़े पैमाने पर ब्राहमण धर्म को राजकीय संरक्षण प्राप्त हुआ।
- पूर्व मध्यकाल में शंकराचार्य के द्वारा हिन्दु धर्म का प्रचार।
- पूर्व मध्यकाल में तुर्को के आक्रमण से भी बौद्ध धर्म को नुकसान हुआ।
बौद्ध साहित्य
(1) हीनयानी साहित्य (2) ललित विस्तार (महायानी साहित्य (3) वज्रयान साहित्य
(1) हीनयानी साहित्य- (1) – त्रिपटक -सुतपिटक , विनयपिटक , अभिधमपिटक
(2) ललित विस्तार (महायानी साहित्य)- एर्लाल्ड विद्धान ने इस कुक का अग्रेजी The light of Asia नाम से अनुवाद किया।
सुतपिटक 5 निकाय मे विभाजित है
- दीव निकाय
- मज्जिम निकाय
- संयुक्त निकाय
- अंगुत्तर निकाय
- खुद्दक निकाय
खुददक निकाय में भी 15 ग्रंथ जैसे
- जातक – बुद्ध के पूर्व जन्म से सम्बंधित कथाये (कहानी)
- धम्मपद – बौद्धों का गीता कहा जाता है।
- मिलिन्द प्रश्न ग्रंथ – मिलिन्द और नागसेन के वीच की वार्तालाप है इसमें
- वंश साहित्य – रचना – श्रीलंका में – इसके अंतर्गत एल्फा किताबे हैं — 1 दीपवंश 2- महावंश
बौद्ध धर्म का योगदान एवं महत्व
- कला – स्तूप, चैत्य, बिहार (स्थापत्य ), मूर्तिकला (गंधारकला, मथुराकला), चित्रकला (अजंता)
- धर्म – कर्मकांड रहित धर्म
- भाषा एवं साहित्य – पाली, संस्कृत ,सिंगली भाषा
Final Words-
मैं उम्मीद करता हूँ आपको ये बौद्ध धर्म का कालक्रम (बौद्ध धर्म का इतिहास) से जुड़ा लेख बहुत ज्यादा पसंद आया होगा। अगर आपको बौद्ध धर्म का कालक्रम (History of Buddhism) पोस्ट पसंद आया हैं तो हमें कमेंट करके जरूर बताये ताकि हम आपके लिये और भी अच्छे तरीके से नये नये टॉपिक लेकर आयें।
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