दोस्तों आज की इस पोस्ट में हम भारतीय संविधान की विशेषताएं विल्कुल डिटेल्स में जानेंगे। क्योंकि दोस्तों भारतीय की विशेषताओं से जुड़े प्रश्न प्रतियोगी परीक्षाओं में बहुत ही ज्यादा तादात में पूछे जाते हैं।
इसलिए संविधान की विशेषताएं बहुत ही महत्वपूर्ण हैं। तो आइये जानते हैं कि संविधान की विशेषताओं के बारे में-
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भारतीय संविधान की विशेषताएं निम्नलिखित हैं।
(1) संविधान की सर्वोच्चता
सर्वोच्च न्यायालय ने अपने कई फैसलों में भारतीय संविधान को सर्वोच्च दस्ताबेज माना हैं। और यह घोषित किया हैं कि विधायिका या कार्यपालिका का कोई भी कार्य संविधान के किसी उपबंध के साथ बेमेल होगा तो उसे उस सीमा तक रद्द कर दिया जायेगा। भीकाजी नरेकावाद 1955, मनेका गांधी बाद 1978 इत्यादि इसके उदाहरण हैं।
(2) विधि का शासन-
जाहिरा हबिबुल्ला शेख बनाम गुजरात राज्य 2004 में सर्वोच्च न्यायालय ने विधि के शासन और विधि की उचित प्रक्रिया को न्याय की प्रणाली की स्थापना के लिए अवश्यक माना था। न्यायालय, सरकार अथवा विधायिका इन दोनों को एक दूसरे से अलग करके कोई निर्णय नही ले सकती ।
(3) सत्ता के पृथक्करण का सिद्धांत-
संसदीय मूलक प्रणाली में सत्ता के पृथक्करण को मुख्यत: 2 रूपो में देखा जाता हैं
- जब न्यायपालिक विधायिका और कार्यपालिका पर नियंत्रण रखती है और वह इन दोनो के प्रभाव से मुक्त रहती है
- जब कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका तीनों एक दूसरो पर समयानुसार नियंत्रण रखते हैं।
(4) न्यायिक समीक्षा-
न्यायिक समीक्षा का अर्थ होता है न्याय पालिका की वह शक्ति जो कार्यपालिका और विधायिका के शक्तियों की विधि मान्यता की जाँच करना और संविधान से असंगत पाये जाने पर उन्हें असंबैधानिक घोषित कर देना। अनुच्छेद 13(2),32(1) 32(2) आदि से सर्वोच्च न्यायालय को यह शक्ति प्राप्त है। 226(1) के अन्तर्गत उच्च न्यायालय को यह शक्ति प्राप्त है प्राय: मौलिक अधिकारों से असंगत होने पर कार्यपालिका अथवा विधायिका के निर्णय को न्यायालय असंबैधानिक घोषित कर देते है अथवा रदद कर देते हैं।
(5) संघवाद –
सरकारों के संबंध में मॉडल
समन्वयक मॉडल- इसमें दो स्तर पर सरकारें काम करती हैं।
- केन्द्रीय
- क्षेत्रीय
क्षेत्रीय स्तर पर कार्यरत सरकारों को राज्य कहते हैं (राज्य शब्द अमेरिकी संघ से लिया गया हैं, जहाँ भी दो स्तर पर सरकारों कार्य करती हैं, वहाँ क्षेत्रीय सरकारों को राज्य कहते न कि प्रांत, और प्राय: राज्य सरकारें जहाँ होती हैं उसे संघ कहते हैं।)
भारत एक समन्वयक मॉडल पर आधारित संघ है जिसका अर्थ हैं कि भारत में बहुदलीय प्रणाली में केन्द्र और राज्य के बीच तालमेल के आधार पर ही शासन का संचालन किया जा सकता हैं।
शांति काल में भी केन्द्र 256 और 257 के अन्तर्गत राज्यों के आंतरिक प्रशासन के मामलों में दखल दे सकता है (भारत के संदर्भ में)
संघ
जब दो स्तर पर सरकारें कार्य करें, और उनके बीच शक्तियों का स्पष्ट विभाजन हो , तो इस शासन प्रणाली को संघ कहते हैं।
भारत में संघ का स्वरूप-
- के0 सी0 हूअरे भारत को अर्द्धसंघीय शासन प्रणाली मानते हैं।
- सर आइवर जेनिंग्स भारत को केन्द्रीय सरकार की ओर झुकी हुई शासन प्रणाली मानते हैं।
- एलेक्जोण्ड़ोविज व डी0 डी0 बसु के0 सी छीअरे के मत से सहमत नहीं हैं और वे भारत को अपने आप में अनुष्ठा खुद से पैदा हुआ या मौलिक)
- डॉ अम्बेडकर इसे जरूरत के अनुसार बनाया गया ढाँचा मानते हैं जबकि ग्रानबिले ऑस्टिन इसे सहकारी संघवाद का उदाहरण मानते हैं।
- भारत में समाजवाद न होकर समाजवादी प्रारूप हैं (प0 नेहरू के अनुसार इसकी निम्नलिखित विशेषताएं हैं।
- उत्पादन और वितरण के साधन केवल राज्य के हाथ में नहीं होंगे बल्कि नीजि क्षेत्रो की भी इसमें भागीदारी होगी
- सरकार यह प्रयास करेगी कि समाज के कमजोर वर्गो के लोगों को विशेष सहूलियत और प्रोत्साहन देकर आगे बढ़ने के अवसर दिए जाये।
- सामाजिक हैसियत या दर्जा, अवसर, आय आदि के संबंध मेंसमाज में जो विषमता हैं सरकार उसे दूर करने का प्रयास करेगी।
- जिनकी आय अधिक हैं उनको अधिक आयकर देना होगा ( इसे प्रगतिशील कराधान कहते हैं ताकि सरकार इस कर राजस्व से समाज के निर्बल लोगों को सशक्त बनाने का प्रयास कर सके और उनके जीवन स्तर को ऊपर उठा सकें।
पंथनिरपेक्षता
इसका सीधा अर्थ हैं राज्य अपना सीधा धर्म/पंथ नही होगा किंतु भारतीयो को अपने धर्म/पंथ चुनने की स्वतंत्रता होगी। हालंकि सामाजिक बुराई को जन्म देने वालेो कर्मकांड/रीतिरिवाज जो धर्म से अपनी ऊर्जा प्राप्त करते हैं , के मामलों में सरकार दखल देकर उन्हें सुधारने का प्रयास करेगी।
समानता/समता का सिद्दांत
समाज में हर व्यक्ति को अवसर की समानता हो।
संसदीय मूलक प्रणाली
जब किसी विधानमण्डल के लोकप्रिय सदन में बहुमत प्राप्त दल सरकार बनाता हैं तो उसे संसदीय मूलक प्रणाली कहते हैं।
स्वतंत्र व निष्पक्ष चुनाव
लोकसंप्रभुता की रक्षा तभी संभव हैं और इसका उपयोग तभी संभव हैं जब स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव करायें जायें। यही कारण है कि निर्वाचन के दौरान राज्य की प्रशआसनिक मशीनरी निर्वाचन आयोग के नियंत्रण में होती हैं।
विधि की उचित प्रक्रिया/ समयक प्रक्रिया
अमेरिकी संविधान से प्रेरित यह उपवाक्य मानव स्वतंत्रता और मानव गरीमा की स्थापना करता हैं, जब विधानमंडल कोई कानून बनाये तो वह न केवल इससे मानव स्वतंत्रता और गरीमा की रक्षा करने का प्रयास करे बल्कि जब इसे पुलिस, प्रशासन और न्यायालय लागू करें तो उसमें ने जल्दबाजी न करें और किसी दोषी व्यक्ति को हर चरण पर खुल के बचाव का अवसर प्रदान करें।
विधान मंडल
- विधान – जो विधान बनाये
- मंडल – जहाँ बहुत सारे लोग इक्टठा हो
- कई लोगों से मिलकर बना वह निकाय जिसे कानून बनाने का अधिकार प्राप्त हो उसे विधानमंडल कहते हैं।
- डी0 डी0 वसु के अनुसार कुछ अन्य विशेषताऐं
संशोधनों के द्वारा विस्तार
भारत में 4 तरह से कानून बनते हैं
- एक तरह से जिसका मूल रूप से उल्लेख संविधान में ही किया गया हो।
- विधानमंडल बनाती हैं।
- सरकारी आदेश से चले जिसे प्रत्यायोजित आयोजन कहते हैं।
- सुप्रीम कोर्ट तय करें।
कानून वो जो लागू हो जिसके अन्तर्गत प्रशासनिक आधिकारी काम करते हैं।
भारतीय संविधान में संशोधन करना दुष्कर्म कार्य नहीं हैं। डॉ अंबेडकर के अनुसार भविष्य के विधि निर्माता तात्कालिन जरूरतों के अनुसार भारतीय संविधान को उपयोगी बना सकें। इसके लिए इस संविधान को लचीला बनाना होगा। अर्थात संशोधन की प्रक्रिया को सरल रखना होगा।
विश्व सबसे बड़ा संविधान
भारतीय संविधान में केंद्र और राज्य तथा स्तानीय निकायों के संबंध में अलग -2 भाग और खण्ड में विभिन्न उपबंध किए गय हैं जिससे इसका आकार वृहद् हो गया है।
कुछ विशेष वर्गो और परिस्थितियों के लिए अलग उपबंध जैसे – भाग-16 के अन्तर्गत (अनुच्छेद 330,331, इत्यादि)। इसी प्रकार भाग -17 में (अनुच्छेद 350 A ,350 B, इत्यादि।
जम्मू कश्मीर, सिक्किम तथा कुछ अऩ्य राज्य जैसे नागालैण्ड, मणिपुर, कर्नाटक आदि के लिए विशेष उपबन्ध हैं-
- अनुच्छेद – 370
- अनुच्छेद -371
- अनुसूची – 5
- अनुसूची – 6
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