भारतीय संविधान के विदेशी स्रोत: विश्व की प्रमुख संवैधानिक व्यवस्था से लिए गए प्रमुख उपबन्ध

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भारतीय संविधान के विदेशी स्रोत (Major Sources of Indian Constitution)

  • भारतीय संविधान के विदेशी स्रोत जैेसे – राष्ट्रीय आपात के दोरान कुछ मौलिक अधिकारों का निलंबन जर्मनी से लिया गया है जहाँ वाइमर संविधान 1930 और 1940 के दशक में काफी सफल रहा। इसी प्रकार आयरलैण्ड में 1936 मेंं नितिनिर्देशक तत्वों की स्वीकार्यता समाजवादी और कल्याणकारी राज्य की स्थापना में मील का पत्थर सिद्ध हुए । इसी प्रकार 1902 के बाद ऑस्ट्रेलिया में केंद्र और क्षेत्रीय इकाइयों के बीच विषय विभाजन, व्यापार की स्वतंत्रता आदि के प्रयोग बहुत सफल रहे। भारतीय संविधान ने इन सभी से सीखा और तदानुसार उपयुक्त व्यवस्था की ।
भारतीय संविधान के विदेशी स्रोत
Major Sources of Indian Constitution

केंद्र और राज्य संबंधो  का विस्तार से वर्णन (भाग -11 के अन्तर्गत)

  • कई ऐसे प्रावधान जेसे अनुच्छेद- 4 , 169 , 239 A(2) आदि में संशोधन साधारण बहुमत से संभव अर्थात जिसके लिए संविधान संशोधन की आवश्यकता नहीं होती हैं।

भारत के नागरिको को कितने भागों में रखा गया हैं?

भारत के नागरिको को दो भागों में रखा गया हैं।

  • वाद योग्य- अनुच्छेद -13(2)
  • अवाद योग्य- अनुच्छेद – 37

परिसंघ क्या हैं?

  • इसमें संचार, रक्षा, विदेश मामले एक केंद्र सरकार के अन्तर्गत होते हैं, शेष में सारे यूनिट फ्री होते हैं यहाँ तक की वे सेवा भी रख सकते हैं।

संघ(Federation) क्या हैं?

  • संघ में केंद्र और राज्य समझौता करते हैं कि न तो हम तुसमे अलग होंगे और न ही तुम हमसे अलग होगें।

एकात्मक संघ किसे कहते हैं?

  • केंद्र, राज्यों के मामलों में दखल के लिए हमेशा अंतिम अधिकार रखता हैं।

भारत में संघीय ढ़ाचे पर सर्वोच्च न्यायालय का क्या मत हैं?

  • सर्वोच्च न्यायालय ने गंगाराम मूलचंदानी बनाम राजस्थान राज्य, 2001 यह व्यवस्था दी कि भारत एक संघ हैं, और एक संघ की ही भांति यहाँ संविधान की सर्वोच्चता, विषयों का विभाजन और एक स्वतंत्र न्यायपालिका हैं।
  • सर्वोच्च न्यायालय ने ऑटो मोबाइल  ट्रांसपोर्ट बनाम राजस्थान राज्य, 1962 में यह स्पष्ट किया कि भारतीय संघ में यघपि केंद्र राष्ट्रीय सुरक्षा, शांति और सोहार्द आदि के मामलों में राज्य के आंतरिक मामलों में दखल दे सकता हैं किंतु इसका यह अर्थ नहीं कि राज्यों के अपने अधिकार क्षेत्र अर्थहीन हो जाते हैं। – कुछ मामलों को छोड़कर राज्य अपने आंतरिक मामलों के प्रशासन से संचालन के लिए स्वतंत्र है।
  • डी0 डी0 बसु के अनुसार भारत में संघ की अतिजीविता का सबसे सबल प्रमाण विभिन्न दलों की सरकारों का सहअस्तित्व में बना रहना है। भले ही ये दल केंद्र में शासन न कर रहे हो।

भारत में एकात्मक शासन के लक्षण

  1. अनुच्छेद 256, 257, 352, 356, 360 आदि के अन्तर्गत केंद्र द्वारा राज्यों के शासन में सीधा दखल।
  2. राज्य के राज्यपालों की नियुक्ति केंद्र द्वारा।
  3. ऩए राज्यों की निर्माण की शक्ति संसद में निहित
  4. अखिल भारतीय सेवाए
  5. वित्तीय मामलों में केंद्र की सर्वोच्चता
  6. राष्ट्रपति केंद्रीय मंत्री परिषद के परामर्श के अनुसार कार्य करता हैं जबकि उसके निर्वाचन में राज्य का प्रमुख योगदान होता हैं।
  7. संविधान संशोन का अधिकार केवल संसद को।
  8. विभिन्न संस्थाओं जेसे निति आयोग, अंतर्राज्य क्षेत्रीय परिषदे, विश्वविधालय अनुदान आयोग आदि के माध्यम से केंद्र द्वारा राज्य के आंतरिक मामलो में दखल। इन्हीं सभी लक्षणों के आधार पर के0 सी0 ह्रअरे ने 19502 में अपनी पुस्तक मॉडर्न संविधान में कहा “भारत एक एकात्मक शासन प्रणाली” हैं जिसमें संघीय विशेषताऐं सहायक तत्व के रूप में मौजूद हैं। किंतु उनसे असहमत होते हुए एलैक्जैण्ड्रोविज और डी0 डी0 बसु ने कहा भारत एक संघीय शासन प्रणाली हैं जबकि एकात्मक विशेषताऐं इसकी सहायक तत्व हैं।

Final Words

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