न्याय का अर्थ, परिभाषा और प्रकार (2023) | Nyay Ke Prakar

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Nyay Ke Prakar: भारत एक लोकतांत्रिक देश हैं, जहाँ जनता को संविधान के अनुसार कोर्ट के द्वारा न्याय मिलता हैं। लेकिन अधिकांश लोग ऐसे हैं, जो न्याय को ठीक से नहीं समझते हैं। इसी के साथ न्याय का अर्थ, परिभाषा और न्याय के प्रकार (Nyay Ke Prakar) के बारे में भी परिचित नहीं होते। जिसके चलते उनका शोषण होता रहता हैं।

अगर आप भी न्याय के बारे में ठीक से नहीं जानते की न्याय क्या हैं, न्याय की परिभाषा क्या हैं और न्याय कितने प्रकार का होता हैं, और आप गूगल या यूट्यूब पर न्याय के प्रकार (Nyay Ke Prakar) के बारे में सर्च कर रहे हैं, तो आप बिल्कुल सही आर्टिकल पर हो, क्योंकि आज की इस पोस्ट में आप न्याय की परिभाषा से लेकर न्याय के प्रकार के बारे में विस्तार से जानेंगे। इसी के साथ हम न्याय से जुड़े महत्वपूर्ण तथ्यों पर भी विचार विमर्श करेंगे। तो आइये जानते हैं, कि Nyay ke Prakar कितने होते हैं।

Nyay Ke Prakar

न्याय की परिभाषा (न्याय किसे कहते हैं) | What is Justice

न्याय का अर्थ होता हैं, लोगों के साथ उचित और समान व्यवहार करना अर्थात हर किसी को वह मिले जिसका वो हकदार हैं तथा गलत को सही किया जायें। न्याय में नियमों और कानूनों का पालन करना, पैसे और अवसरों जैसी चीजों को साझा करने में निष्पक्ष होना और लोगों को उनके कार्यों के लिए जवाबदेह ठहराना शामिल है।

इसमें समस्याओं को ठीक करना और चीजों को बेहतर बनाना भी शामिल है जब किसी को चोट लगी हो या उसके साथ गलत व्यवहार किया गया हो।

न्याय महत्वपूर्ण है क्योंकि यह एक ऐसे समाज को बनाने में मदद करता है जहां हर किसी को सफल होने का उचित मौका मिलता है और जहां लोगों के साथ सम्मान और सम्मान के साथ व्यवहार किया जाता है। वास्तव में इसी को न्याय कहते हैं।

न्याय के तीन सिद्धांत कौन से हैं?

न्याय के प्रमुख तीन सिद्धांत निम्नलिखित हैं।

  1. देश के गरीब और ज़रूरतमंदों को निशुल्क सेवाएँ देना, एक धर्म कार्य के रूप में न्यायोचित है।
  2. न्याय के द्वारा सभी नागरिकों को जीवन का न्यूनतम बुनियादी स्तर उपलब्ध करवाना तथा अवसरों की समानता सुनिश्चित करने का एक तरीका है।
  3. समाज में कुछ लोग प्राकृतिक रूप से आलसी होते हैं। इसलिए हमें उनके प्रति दयालु होना चाहिए।

उपरोक्त तीन न्याय के प्रमुख सिद्धांत हैं।

न्याय कितने प्रकार हैं? (Nyay Ke Prakar)

अधिकांश विद्वानों के अनुसार न्याय तीन प्रकार का होता हैं। आपसी आसानी के लिए हमने नीचे प्रत्येक को एक एक करके विस्तार रूप से समझाया हैं।

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सामाजिक न्याय

जब बिना किसी सामाजिक भेदभाव जैसे जाति, धर्म, प्रजाति अथवा नश्ल, वंश अथवा मूलस्थान आदि के आधार पर लोगों के बीच राज्य को कोई भेदभाव नहीं करना चाहिए यहीं सामाजिक न्याय हैं। डॉ. भीमराव अम्बेडकर के अनुसार राजनैतिक जनतंत्र जब तक अर्थहीन बना रहेगा जब तक सामाजिक जनंतत्र की स्थापना नहीं हो जाती।

आर्थिक न्याय

  • पडित नेहरू ने, पडिक्कर ने और अम्बेडकर ने एक स्वर से यह स्वीकारा हैं कि आर्थिक न्याय की स्थापना आर्थिक जनतंत्र के बिना नहीं हो सकती हैं। इसका अर्थ यह हुआ कि-
    1. सरकार संसाधनों का विस्तार करें
    2. लोगों को इसका लाभ लेने के लिए अवसर प्रदान कराये
    3. समाज के कमजोर वर्गों को क्षमता वान बनायें।
  • अनुच्छेद 15(4) और 16(4) के अन्तर्गत सामाजिक, शैक्षणिक और आर्थिक पिछड़ेपन के आधार पर समाज के कमजोर वर्गों को सरकारी सेवायोजन में आरक्षण (तरजीह) देना इसी न्याय का विस्तार हैं। वास्तव में गैर बराबर को बराबर बनाना जिससे कि वह भी सरकार औरर समाज द्वारा उपलब्ध कराये गए अवसरों का पूरा लाभ ले सकें को ही सामाजिक-आर्थिक न्याय कहेंगे। सर्वोच्च न्यायालय ने डॉल्मियां सीमेन्ट लिमिटेड बनाम भारत संघ 1996 के मुकदमें में सामाजिक न्याय की अवधारणा को स्पष्ट करते हुए कहा कि समाज के विभिन्न प्रतिद्वन्द्वी डावो का समायोजन कर कल्याणकारी राज्यों की स्थापना ही सामाजिक न्याय का प्रमुख उददेश्य हैं।

राजनीतिक न्याय

बिना किसी भेदभाव के सभी नागरिकों को राजनीतिक प्रक्रिया में भाग लेने का अवसर देना राजनीतिक न्याय हैं। राजनीतिक प्रक्रिया में भागीदारी का तो अर्थ होता हैं-

  1. मतदाता के रूप भाग लेना।
  2. चुनाव लड़ना (प्रत्याशी के रूप में भाग लेना)

लिलि थॉमस बनाम भारत संघ, 2013

लिलि थॉमस बनाम भारत संघ 2013 के मुकदमें में सुप्रीम कोर्ट ने जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 की धारा 8(4) को अनुच्छेद 102और(14) के साथ असंगत पाया और इसलिए इस धारा की उपधारा को रद्द कर दिया गया। इसलिए यह राजीतिक न्याय की स्थापना में एक महत्वपूर्ण निर्णय था।

मुख्य निर्वाचन आयुक्त बनाम चौकीदार, 2013

मुख्य निर्वाचन आयुक्त बनाम चौकीदार 2013 के फैसले में सर्वोच्च न्यायालय ने पटना हाइकोर्ट के फैसले को उचित बताते हुए यह व्यवस्था दी कि यदि किसी व्यक्ति को कानूनी रूप से हिरासत में रखा गया हैं तो ऐसी दशा में वह अपना पर्चा दाखिला नहीं कर पायेगा यह नियम जिस प्रकार आम आदमी के लिए लागू है उसी प्रकार जनप्रतिनिधियों पर लागू होगा।

स्वतंत्रता

भारतीय संविधान अनुच्छेद 19(1)(9) के अन्तर्गत वाक् और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता  देता हैं। इसी प्रकारसे अनु0 25(1),25(2) में धर्म की आजादी निहित हैं। किन्तु यह स्वतंत्रता कुछ शर्तों के साथ उपलब्ध हैं जैसे समाज में विद्वैश पैदा करने के लिए कोई विचार नहीं रखे जा सकते और इसी प्रकारर धर्म की आड़ में कुरीतियों को बढ़ावा नहीं दिया जा सकता ।

  • वाक् व अभिव्यक्ति (विचारों की)
  • आस्था, उपासना , पूजा

समानता

  • अवसरों की तथा प्रस्थितियाँ (सामाजिक हैसियत ) की।
  • डॉ बी आर अम्बेडकर ने 25 नम्बर 1949 को संविधान सभा को अंतिम रूप से संबोधित करते हुए स्वतंत्रता, समानता, बंधुत्व को त्रयसंघ कहा था। उनके अनुसार यदि एक को दूसरे से पृथक कर लागू करने का प्रयास किया गया तो संविधान के उद्देश्य धरे के धरे रह जायेंगे। उनके अनुसार यदि बिना समानता के स्वतंत्रता दे दी गई तो समाज के कुछ लोगों का आधिपत्य फिर से समाप्त हो जायेगा। इसी प्रकार यदि बिना स्वतंत्रता के बिना समानता दे दी गई तो कुछ लोगों में आगे बढ़ने की ललक समाप्त हो जायेगी। इसी प्रकार भाई चारा की भावना की तरह स्वतंत्रता और समानता के रहते हुए भी दूसरों के हक को स्वीकार करना मुश्किल होगा। स्वतंत्रता, समानता के साथ-2 इसीलिए हमारे संविधान निर्माताओं ने प्रस्तावना में बंधुत्व का भी प्रयोग किया। सर्वोच्च न्यायालय ने भी इन्दरा साहनी बनाम भारत संध 1993 में इन तीनों तत्वों पर टिप्पणी करते हुए मानव गरिमा की स्थापना के लिए बंधुत्व को आवश्यक बताया। यहीं नहीं न्यायालय ने सामाजिक पिछडे़पन से मुक्ति के लिए भी बंधुत्व को आवश्यक बताया।
  • भारत में विभिन्न समुदायों के बीच एकता और बंधुत्व का सबसे बड़ा प्रमाण एकल नागरिकता हैं। जो एक व्यक्ति , एक मत और एक मूल्य के सिद्धांत पर टिका हुआ हैं।

आज आपने क्या सीखा

हमने आज की इस पोस्ट के माध्यम से न्याय का अर्थ, परिभाषा और प्रकार (Nyay Ke Prakar) के बारे में विस्तार से जाना। साथ ही स्वतंत्रता, समानता तथा कुछ महत्वपूर्ण वादों पर चर्चा की, जोकि आपकी परीक्षा की दृष्टि से उपयोगी साबित हो सकते हैं।

उम्मीद हैं, कि आपको आज की ये जानकारी पसंद आयी होगी। अगर आपको हमारे द्वारा किया गया प्रयास पसंद आया तो इस पोस्ट को अपने दोस्तों के साथ शेयर कीजियेगा ताकि वो भी जान सकें कि न्याय क्या हैं, न्याय की परिभाषा क्या हैं और न्याय कितने प्रकार (Nyay ke Prakar) का होता हैं

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