भारत सरकार अधिनियम 1935 की विशेषताएं, आलोचना एवं महत्व – My Hindi GK

भारत सरकार अधिनियम 1935
Government of India Act, 1935

भारत सरकार अधिनियम 1935 (Government of India Act 1935) : नेहरू रिपोर्ट के विरोध में जिन्ना ने अपनी 14 सूत्री माँग 29 मार्च 1929 को पेश किया। इसके पश्चात ब्रिटेन में 1930 में प्रथम, 1931 द्वितीय तथा 1932 में तृतीय गोलमेज सम्मेलन आयोजन, संबैधानिक सुधारों पर विचार हेतु किया गया। अत: ब्रिटिश सरकार ने 1933 में श्वेतपत्र के माध्यम से नयें संबिधान की रूपरेखा प्रस्तुत किया। जिस पर विचार के लिए लॉर्ड लिनलिथगों की अध्यक्षता में संयुक्त समिति का गठन किया गया। इस समिति की रिपोर्ट के आधार पर तैयार विधेयक संसद के पास होने के बाद 4 अगस्त 1935 को ब्रिटिश सम्राट की अनुमति पाकर भारत सरकार अधिनियम 1935 बना।

भारत सरकार अधिनियम 1935 की विशेषताएं क्या हैं?

अखिल भारतीय संघ की स्थापना

भारत सरकार अधिनियम 1935 के अनुसार अखिल भारतीय संघ की स्थापना 11 ब्रिटिश प्रान्तों, 6 कमिश्नरियों तथा उन देशी रियासतों, से मिलकर होना था, जो स्वेच्छा से इसमें शामिल हो ब्रिटिश प्रांतों के लिए संघ मे शामिल होना आवश्यक था। किन्तु देशी रियासतों का संघ में शामिल होना स्वैच्छिक था। देशी रियासतें संघ में शामिल नहीं हुई। अत: यह प्रस्ताव मूर्त रूप न ले सका। यघपि अखिल भारतीय संघ अस्तित्व में नहीं आ सका किन्तु 1 अप्रैल 1937 को प्रान्तीय स्वायत्ता लागू कर दी गयी।

केंद्र में द्वैध शासन

1919 अधिनियम द्वारा प्रान्तों में स्थापित द्वैध शासन इस अधिनियम द्वारा समाप्त कर दिया गया तथा उसे केन्द्र में लागू किया गया। इस उद्देश्य से केन्द्रीय प्रशासन के विषयों को रक्षित तथा हस्तान्तरित विषयों में वर्गीकृत किया गया। रक्षित विषयों का प्रशासन गवर्नर जनरल अपनी परिषद की सहायता से करता था। हस्तान्तरित विषयों का प्रशासन गवर्नर जनरल अपनी मंत्रीपरिषद की सहायता से करता था जो विधान सभा के प्रति उत्तरदायी थी।

प्रांतीय स्वायत्ता

प्रांतों में स्वायत्ता शासन की स्थापना इस अधिनियम की एक महत्वपूर्ण विशेषता थी। विधि निर्माण हेतु वर्गीकृत केन्द्रीय और प्रान्तीय विषयों में से प्रान्तीय विषयों पर विधि बनाने का अत्यांतिक अधिकार प्रान्तों को दिया गया तथा उनपर से केन्द्र का नियंत्रण समाप्त कर दिया गया।

संघीय न्यायालय

संघीय न्यायालय दिल्ली में स्थित हैं। इसमें एक मुख्य न्यायधीश तथा अधिकतम 6 अन्य न्यायधीश हो सकते हैं। उनकी नियुक्ति सम्राट द्वारा की जाती थी। उसके निर्णय के विरुद्ध अपील प्रीवी कौंसिल (Privy Council) में की जा सकती थी। 1 अक्टूबर 1937 से यह न्यायालय कार्यरत हो गया।

भारत परिषद अधिनियम 1909 (मार्ले-मिंटो सुधार अधिनियम) – My Hindi GK

शक्तियों का विभाजन

भारत सरकार अधिनियम 1935 द्वारा केंद्र एवं प्रांतों के मध्य शक्तियों का विभाजन तीन सूचियों में यथा-

  1. संघ सूची (59 विषय)
  2. प्रांतीय सूची (54 विषय)
  3. समवर्ती सूची (36 विषय)

अवशिष्ट विषयों सहित कुछ आपातकालीन अधिकार वायसराय को सौंपा गया था।

भारत सरकार अधिनियम 1935 के द्वारा केंद्रीय विधानमंडल में परिवर्तन

  • संघीय सभा- निचला सदन
  • 375 सदस्य
    • 250 सीधे निर्वाचन द्धारा
    •  125 रजबाड़ो द्धारा मनोनीत
  • राज्य परिषद- उपरी सदन
  • इसे स्थायी सदन बना दिया गया।
    • 9 वर्ष में पूर्ण नवीनीकरण होना था
    • इसके 1/3 सदस्य प्रत्येक 3 वर्ष पर सेवानिवृत्त होने थे
  •  260 सदस्य
    • 156 सीधे निर्वाचन द्धारा।
    • 104 रजबाडो द्धारा मनोनीत

भारत सरकार अधिनियम 1935 द्वारा केन्द्रीय सरकार में परिवर्तन

  • इस अधिनियम के अन्तर्गत ब्रिटिश प्रांतो से Dyarchy को हटाया जाना था और इसे केन्द्र में लागू किया जाना था हालांकि यह व्यवहार में कभी लागू नहीं हुआ
  • गवर्नर जनरल को निम्नलिखित भूमिकाओं में कार्य करना था
    1. निर्वाचित मंत्रियों के परामर्श से
    2. मनोनीत सलाहकारों के परामर्श से
    3. अपने विवेक से और विशेष उत्तरदायित्व के अन्तर्गत। विशेष उत्तरदायित्व के अन्तर्गत उसे ब्रिटिश सम्राट और ब्रिटिश साम्राज्य की रक्षा के लिए स्वतंत्र निर्णय लेने का अधिकार था। इसे अतिरिक्त वह स्व: विवेक से निम्नलिखित के सम्बंध में निर्णय ले सकता था।
  • विदेश संचार व रक्षा मामले।
  • आपराधिक मामले।
  • राष्ट्रीय व आंतरिक सुरक्षा के मामले।
  • अल्पसंख्यकों के कल्याण संबंधी मामले।
  • जनजातीय मामले, ब्रिटिश साम्राज्य के हितों को संरक्षित करने के लिए किसी अन्य मामले में

भारत सरकार अधिनियम 1935 के पश्चात प्रांतीय विधानमंडल में परिवर्तन

  • इस अधिनियम के अंतर्गत 6 ब्रिटिश प्रांतो को द्विसदनीय बना दिया गया।
  • ये प्रांत हैं- बंगाल , बिहार , बॉम्बे , मद्रास संयुक्त प्रांत (उ0प्र0) और असम

भारत सरकार अधिनियम 1919 के उद्देश्य, गुण और दोष (Government of India Act 1919)

भारत सरकार अधिनियम 1935 के द्वारा प्रांतीय सरकार में परिवर्तन

  • इस अधिनियम की सबसे बड़ी विशेषता प्रांतीय स्वायत्ता है। अर्थात पहली बार प्रांतो को विषय विभाजन(सत्ता विभाजन) के अन्तर्गत स्थायी रूप से कुछ विषय प्राप्त हुए आज भारत का संघीय ढाँचा काफी हद तक इससे प्रेरित हैं।
  • 42 वे संबिधान संशोधन अधिनियम 1976 के द्वारा नियोजन, जनसंख्या/जनगणना, वाट एवं माप, वन व पर्यावरण, शिक्षा संवर्ती सूची में शामिल कर दिया गया था।
  • प्रांतीय राज्यपालों को भी गवर्नर जनरल की भांति स्व: विवेक से निर्णय लेने और मंत्रियों के परामर्श की अवहेलना करने का अधिकार था। आज अनु0 -163(1) के अन्तर्गत राज्य के राज्यपालों को विवेक से निर्णय लेने का अधिकार है अर्थात वे मुख्यमंत्री की अध्यक्षता वाले मंत्री परिषद के परामर्श को कुछ परिस्थितियों में मानने से मनाकर सकते है।
  • इस अधिनियम के अन्तर्गत धारा 90 के अन्तर्गत ब्रिटिश गवर्नर जनरल को ब्रिटिश प्रांतो में चुनी हुई सरकार को बर्खास्त कर वहां गवर्नर जनरल शासन लगाने का अधिकार था। आज भारत के राष्ट्रपति को अनु0 356 के अन्तर्गत राज्यों में चुनी हीई सरकार को बर्खास्त का राष्ट्रपति शासन लगाने का अधिकार हैं। वर्तमान भारतीय संबिधान के निम्नलिखित तत्व व निम्नलिखित संस्थायें भारत सरकार अधिनियम 1935 से प्रेरित हैं।
    • संसदीय मूलक शासन प्रणाली(ब्रिटेन के संबिधान)
    • मंत्री परिषद की रचना (निचले सदन में बहुमद के आधार पर)
    • प्रांतीय स्वायत्ता अर्थात सत्ता का विभाजन
    • संसद की द्विसदनीय व्यवस्था और कुछ राज्यों में द्विसदनीय व्यवस्था
    • केन्द्र-राज्य सबंध
    • विधायी प्रक्रिया तथा नियम प्रक्रिया (किसी विधेयक को पारित करने के लिए, कोई संकल्प/प्रस्ताव लाने के लिए और उन्हें पारित करने के लिए)
    • अखिल भारतीय सेवायें
    • फैडेरल कोर्ट के रूप में सर्वोच्च न्यायालय
    • नियंत्रण एवं महालेखा परीक्षक का पद
    • महान्यायवादी व महादिवक्ता का पद
    • निर्वाचन प्रणाली एवं निर्वाचन का पद
    • राज्यपालों की भूमिका और उनके विवेकाधिकार
    • प्रांतीय सिविल सेवा और भारतीय सिविल सेवा का भारतीय रण-1919 में पहली बार यह किया गया कि प्रांतीय सिविल सेवा के 50 प्रतिशत सदस्य अखिल भारतीय सेवा में पदोन्नत होगें। इसी को 1935 में भी अपनाया गया इसे ब्रिटिश सिविल सेवा का भारतीयकरण कहते हैं। आज हर प्रांत से 33.33 प्रतिशत प्रांतीय सिविल सेवा के सदस्य अखिल भारतीय सेवा में पदोन्नत होते हैं।
    • संघ लोग सेवा और प्रांतीय लोक सेवा आयोग की रचना

भारत सरकार अधिनियम 1935 की आलोचना

  • जिसकी आलोचना साइमन कमिशन आयोग ने भी की थी  उसे केन्द्र में लागू करने का प्रस्ताव कर संसदीय शासन प्रणाली का एक प्रकार मजाक बनाया गया।
  • ज्ञात सभी संसदीय परम्पराओं के विपरीत इस अधिनियम के अन्तर्गत राज्यसभाओ का निर्वाचन प्रत्यक्ष होना था जबकि संघीय विधान सभा का निर्वाचन परोक्ष रूप से होना था
  • रजवाड़ो को आवश्यकता से अधिक तरजीह देते हुए केन्द्रीय विधानमंडल के दोनो सदनों में एक तिहाई प्रतिनिधित्व दिया गया था। (उपरले सदन में उससे भी अधिक) जबकि वे एक तिहाई से कम जनसख्या का प्रतिधित्व करते थे।
  • बजट के 80 प्रतिशत भाग पर सदन को मतदान करने का अधिकार नहीं दिया गया था। हम सभी जानते है कि वजट कार्यपालिका पर विधायिका के नियंत्रण का एक सशक्त उपकरण हैं।

नोट

  • सतेन्द्र नाथ सिन्हा वायसराय के कार्यकारी परिषद में शामिल होने वाले पहले भारतीय है (1908)।
  • के0 जी0 गुप्ता तथा सैय्यद हुसैन बिलग्रामी भारत राज्य सचिव के परिषद में शामिल होने वाले पहले भारतीय हैं।

Final Words-

मैं उम्मीद करता हूँ आपको ये भारत सरकार अधिनियम 1935 (Government of India Act 1935) के उद्देश्य, गुण और दोष बहुत ज्यादा पसंद आया होगा। अगर आपको भारतीय संविधान का भारत सरकार अधिनियम 1935 (Government of India Act 1935) पोस्ट पसंद आया हैं तो हमें कमेंट करके जरूर बताये ताकि हम आपके लिये और भी अच्छे तरीके से नये नये टॉपिक लेकर आयें। जिससे आप अपने किसी भी एग्जाम की तैयारी अच्छे से कर सकें। धन्यवाद

नोट:- सभी प्रश्नों को लिखने और बनाने में पूरी तरह से सावधानी बरती गयी है लेकिन फिर भी किसी भी तरह की त्रुटि या फिर किसी भी तरह की व्याकरण और भाषाई अशुद्धता के लिए हमारी वेबसाइट My GK Hindi पोर्टल और पोर्टल की टीम जिम्मेदार नहीं होगी |

Visit My Hindi Gk – Click here & for Polity All Post – Click here

ये भी जरूर पढ़ें…

Leave a Comment

Ads Blocker Image Powered by Code Help Pro

Ads Blocker Detected!!!

We have detected that you are using extensions to block ads. Please support us by disabling these ads blocker.

Powered By
Best Wordpress Adblock Detecting Plugin | CHP Adblock