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सिंधु घाटी सभ्यता का नामकरण
सर्वप्रथम 1921 जाँन मार्शल के नेतृत्व में दयाराम साहनी ने हड़प्पा में उत्खनन कार्य प्रारम्भ किया। पुरातत्व विज्ञान में यह परम्परा हैं कि जिस स्थल से सर्वप्रथम किसी सभ्यता या संस्कृति की जानकारी मिलती हैं। उसके आधार पर उसका नाम रखा जाता हैं इसलिए इसका एक लोकप्रिय नाम सिंधु घाटी सभ्यता/सैंधव सभ्यता भी हैं
सिंधु घाटी सभ्यता का उदय
प्रारम्भ में यह मान्यता प्रचलित थी कि मेसोपोटामियां के लोगों ने इस सभ्यता का विकास किया होगा। आधुनिक शोधों में यह धारणा खण्डित हुई हैं। दोनों के नगर नियोजन, लिपि इत्यादि में अंतर को आधार बनाया गया है। हड़प्पा के उदय को स्थानीय ताम्रपाष्णिक संस्कृतियों के विकास का परिणाम माना जाता हैं। यह संभव रहा होगा कि मेसोपोटामियां की सभ्यता से व्यापार के कारण शहरों का अधिक विकास हुआ हो।
सिंधु घाटी सभ्यता के विस्तार का वर्णन करो
अफगानिस्तान-
- बदख्शां (लाजवर्द मणि)
- शोर्तघोई
- मंढीगत
पाकिस्तान (सिंधु नदी क्षेत्र)-
- मोहनजोदड़ो
- जाहुन्दड़ो
- अमरी
- कोटदीजी
पश्चिमी पंजाब-हड़प्पा
ब्लूचिस्तान-मेहरगढ़
पाकिस्तान का तटवर्ती क्षेत्र (अरब सागर से लगा क्षेत्र)- सुत्काजेंडोर और सुत्काकोह
भारत-
- पंजाब- रोपड़
- राजस्थान- कालीबंगा
- गुजरात- धौलावीरा, सुकोतेदा, देसलपुर, लोथल, रंगपुर, रोजदी, प्रभास पाटन
- हरियाणा- राखीगढ़ी, बनावली
- महाराष्ट्र- दैमाबाद
- जम्जू कश्मीर- मांदा
- उत्तर प्रदेश- आलमगीरपुर
हड़प्पा कालीन राजनीति
हड़प्पा में राजनीतिक प्रक़ृति के संदर्भ में प्रमाणिकता के साथ कुछ भी कहना मुश्किल है लेकिन साक्ष्यों के आधार पर केन्द्रीय प्रशासन, नगर प्रशासन, प्रशासन में व्यापारियों की महत्वपूर्ण भूमिका इत्यादि का अनुमान लगाया जाता हैं।
नोट- सिंधु घाटी सभ्यता की लिपि को वुस्ट्रोफोडन कहते हैं। यह भाव चित्रात्मक हैं और यह दाँये से बाँये और बाँये से दाँये के क्रम में लिखी जाती थी। प्रायः मौहरों एवं बर्तनों से लिपि के साक्ष्य मिले हैं। धौलावीरा में एक विशाल साइन बोर्ड का प्रमाण मिला हैं।
सिंधु घाटी सभ्यता की अर्थव्यवस्था
- कृषि-
- लोथल- चावल
- हड़प्पा- गेहूँ, जौ
- बनावली- जौ
- कालीबंगा- जुते हुए खेत/हल रेखा के प्रमाण
- पशुपालक- मिट्टी की मूर्तिकाय, मोहरे, बर्तन पर चित्र एवं जानवरों के हड्डियों के आधार पर यह अनुमान लगाया है कि विभिन्न पशुओं का ज्ञान था।
नोट- मिट्टी की मूर्तियों में सर्वाधिक कूबढ़ वाले वैल की सर्वाधिक मूर्तियां मिली हैं तथा मोहरों पर गाय का चित्र नहीं है। घोड़े से परिचय था या नहीं इसको लेकर विवाद हैं।
- शिल्प-
- ताँबा, कांसा, चाँदी, सोना इत्यादि से निर्मित विभिन्न उपकरण, आभूषण, इत्यादि तथा लोहे का प्रमाण नहीं।
- घातक हथियारों के प्रमाण अपवाद स्वरूप हैं अर्थात इक्के दुक्के।
लोथल एवं मोहलजोदड़ों से हाथी दाँत से निर्मित वस्तुओं के साक्ष्य भी मिलते हैं। बड़ीं संख्या में सेलखड़ी से निर्मित मनकों का साक्ष्य सर्वाधिक साक्ष्य लोथल एवं जानुदड़ों से। संभवतः मनकों का उपयोग आभूषण, तावीज, पशुओं की पहचान इत्यादि के लिए किया जाता होगा।
- काले एवं लाल रंग से चित्रित बड़ी संख्या में मिट्टी के बर्तन के प्रमाण भी मिलते हैं।
- पक्की ईंटों का व्यापक प्रचलन (आज की तरह ईंटे थी।), मिट्टी की मूर्तियां इत्यादि प्रमुख शिल्प के साक्ष्य
- अधिकांशत: सेलखड़ी से निर्मित मोहरों के भी प्रमाण।
- मोहन जोदड़ों एवं कुछ अन्य स्थलों से सूती कपड़ों के साक्ष्य।
- व्यापार- आंतरिक एवं वाह्य व्यापार के प्रमाण मिलते हैं। जैसे- ताँबा की आपूर्ति राजस्थान से अन्य शहरों को की जाती होगी। इसी प्रकार मेसोपोटामियां की कुछ वस्तुएँ सिंधु घाटी सभ्यता के शहरों में तथा सिंधु घाटी सभ्यता की वस्तुएँ मेसोपोटामियाँ एवं फारस की खाड़ी के शहरों से मिली हैं। मेसोपोटामियाई लेख में भी हड़प्पा (मेलुहा) से व्यापार का उल्लेख मिलता हैं।
- सिक्के- हड़प्पाई स्थलों से सिक्कों का साक्ष्य नहीं मिला है। संभवत: वस्तु विनिमय प्रणाली प्रचलित रही होगी। साक्ष्यों से नव परिवहन, वैलगाड़ी, इक्कागाड़ी इत्यादि के प्रचलन की जानकारी मिलती हैं।
नोट- दैमाबाद से कांसे से निर्मित वैलगाड़ी ताथा लोथल से पक्की ईंटों के दारा निर्मित विशाल डाकयार्ड (बंदरगाह) का प्रमाण मिलता हैं।
शहर- सिंधु घाटी सभ्यता भारतीय उपमहादीप में प्रथम शहरीकरण का प्रतिनिधित्व करती हैं। (इस सभ्यता को कांस्युगीन शहरीकरण) भी कहते हैं।
सिंधु घाटी सभ्यता का समाज
- साक्ष्यों से विभिन्न वर्गों के उपस्थिति के प्रमाण जैसे- शासक, शासित, कारीगर, व्यापारी, कृषक, श्रमिक इत्यादि।
- प्रमाणों के आधार पर समाज में भेदभाव का भी अनुमान लगाया जाता हैं। जैसे- मकानों की बनावट में अंतर, कीमती धानुओं का प्रचलन इत्यादि।
- बड़ीं संख्या में महिलाओं से सम्बंधित मिट्टी की मूर्तियों के आधार पर महिलाओं की बेहतर स्थिति का अनुमान व्यक्त किया गया हैं और आभूषमों की विविदता एवं श्रृंगार के प्रति लगाव जैसी विशेषताएँ आज भी हमारे जीवन में प्रभावित हो रही हैं।
- खान-पान में शाकाहारी एवं मांसाहरी दोनों का प्रचलन, ढोल, वीणा इत्यादि के प्रमाण, संगीत के प्रचलन का संकेत, पक्की ईंटों के मकान शहरों में बेहतर आवासीय जीवन का संकेत हैं।
- नियोजित मकान, नियोजित सड़कें, धातुओं को गलाने की कला, एक आकार की ईंटों का निर्माण, मापतोल की वस्तुओं में एक रूपता इत्यादि अर्थात किसी न किसी प्रकार की वैज्ञानिक शिक्षा के प्रचलन का प्रमाण हैं।
- सिंधु घाटी सभ्यता के शहरों से अंतिम संस्कार में विविधता के प्रमाण मिलते हैं। जैसे- दाह संस्कार, आंषिक शवाधान (दफनाना), पूर्ण शवाधान, इत्यादि। इसी प्रकार अलग अलग प्रजातियों की उपस्थिति, विविधता में एकता, सहिष्णुता के साथ जीवन जीने की कला को रेखांकित करती हैं।
- शहरों में नालियों के प्रमाण, नालियों के साफ-सफाई के साक्ष्य, बर्तनों को ढककर रखे जाने के प्रमाण इत्यादि के आधार पर स्वास्थ्य के प्रति जागरूक समाज के रूप में हड़प्पावासियों को देखा जाता हैं।
नोट- लोथल से युग्ल, युग्म शवाधान के प्रमाण(दो व्यक्तियों को एक साथ दफनाना) तथा हड़प्पा से ताबूत में दफनाने के प्रमाण।
सिंधु घाटी सभ्यता का धर्म
सिंधु घाटी सभ्यता से प्राप्त साक्ष्यों के आधार पर धार्मिक जीवन के संदर्भ में निम्नलिखित विचार व्यक्त किये गये हैं। जैसे
- मोहनजोदड़ों के एक मुहर पर योगा की मुद्रा में बैठे हुए तथा विभिन्न पशुओं से घिरे हुए एक व्यक्ति की आकृति बनी हुई हैं कई विदानों ने इसे शिव का प्रारम्भिक रूप माना हैं। बड़ी संख्या में शिवलिंग की प्राप्ति तथा कूबड़ वाले वैल के साक्ष्य इस धारणा को और मजबूत करते हैं।
- इसी प्रकार मिट्टी की मूर्तियां एवं मुहरों से देवीपूजा के प्रचलन का भी अनुमान लगाया गया हैं। जैसे हड़प्पा की एक मुहर से महिला के गर्भ से पौधे को निकलते हुए दिखाया गया हैं संभवत: देवी के रूप में पृथ्वी की अराधना की जाती होगी।
- जल, पशु-पक्षी, वनस्पति, अग्नि इत्यादि का चित्रण भी प्रकृति पूजा का संकेत हो सकता हैं। लोथल, बनावली, कालीबंगा इत्यादि स्थलों से अग्नीकुंड के साथ हड्डियों का भी प्रमाण। संभवत: बलिप्रथा का भी प्रचलन रहा हो।
- मृतकों को वस्तुओ के साथ दफनाना, मनकों के साक्ष्य इत्यादि अंधविश्वास, पुर्नजागरण का संकेत हो सकता हैं।
- पूजापाठ की पध्दति, पूजा का उद्देश्य, पूजा स्थल एवं पुरोहित वर्ग के संदर्भ में प्रमाण के साथ कुछ भी कहना मुश्किल है लेकिन प्राप्त साक्ष्य धार्मिक गतिविधियों के पर्याप्त प्रमाण प्रस्तुत करते हैं।
हड़प्पाई कला
हड़प्पाई नगर नियोजन या स्थापत्य कला
- सिंधु घाटी सभ्यता का नगर नियोजन न केवल भारतीय इतिहास वल्कि विश्व इतिहास में भी आकृषण एवं चर्चा का विषय हैं।
- प्राय: सिंधु घाटी सभ्यता के शहर दो भागों में विभाजित थे – पश्चिमी एवं पूर्वी भाग हालांकि इसके कुछ अपवाद भी हैं जैसे- धौलावीरा तीन भागों में विभाजित, लोथल एवं वनावली के विभाजन के प्रमाण नहीं मिलते हैं।
- पश्चिमी भाग अपेक्षाकृत ऊँचाई पर स्थित हैं और इसके चारों तरफ किलेबंदी की गयी हैं। दुर्ग के भीतर बड़ी संख्या में विशाल इमारतों के प्रमाण मिलते हैं, जैसे मोहनजोदड़ो से सार्वजनिक स्नानागार, अन्नागार एवं सभाभवन।
- संभवत: आधुनिक काल की तरह दुर्गीकृत क्षेत्र में शासक वर्ग के लोग रहते होंगे और इन भवनों का व्यक्तिगत एवं सार्वजनिक दृष्टिकोण से उपयोग किया जाता होगा।
- पश्चिमी भाग की तुलना में पूर्वीभाग का क्षेत्रफल अधिक था। लेकिन यहाँ किसी प्रकार के किलेबंदी के प्रमाण नहीं मिलते है। इसका अपवाद हैं कालीबंगा जहाँ पूर्वी भाग की भी किलेबंदी की गई हैं।
- पूर्वी भाग में नियोजित सड़कों के प्रमाण मिलते हैं। स़ड़के एक दूसरे को समान समकोण पर काटती थी तथा नगर को आयताकार खण्डों में विभाजित करती थी। आज भी शहरों में सड़कों की नियोजन का यह मॉडल देखा जा सकता हैं।
- निचले शहर की एक अन्य महत्वपूर्ण विशेषता श्रृंखलाबध्द तरीके से मकानों का निर्माण हैं। मकानों में अलंकरण (कीमती चीजें) का अभाव हैं। मकानों के निर्माण में पक्की ईंटों का प्रयोग किया गया है और ईंटों का आकार सभी शहरों में एक जैसा हैं।
- प्रत्येक मकान में रसोई, स्नानागार, नालियों की व्यवस्था इत्यादि के साक्ष्य भी मिलते हैं।
- नालिया मुख्य नाले में गिरती थी और मुख्य नालों के साफ सफाई व ढककर रखे जाने का भी प्रमाण हैं। जल निकासी व्यवस्था के दृष्टिकों से भी समकालीन सभ्यताओं की तुलना में हड़प्पा को सर्वोत्कृष्ट माना गया हैं।
- हड़प्पाई शहरों के नियोजन के संदर्भ में ऐसा अनुमान व्यक्त किया गया है कि एक विकसित नगर प्रशासन के विना यह नियोजन संभव नहीं था
- हालांकि 1920 BC के आसपास शहरों का पतन, समकालीन सभ्यता की सीमाओं को उजागर करते हैं। जैसे केवल नदियों के किनारे शहरों का विकास, तकनीकी तौर पर कोई विशेष परिवर्तन नहीं, प्राकृतिक आपदा से प्रभावित क्षेत्रों में भी शहरों का विकास इत्यादि
- अमरी एवं कोटदीजी से किलेबंदी का प्रमाण नहीं मिला हैं।
हड़प्पाई मूर्तिकला
- सिंधु घाटी सभ्यता के शहरों से पत्थर, धातु एवं मिट्टी की मूर्तियों के साक्ष्य मिले हैं मिट्टी की मूर्तियां बहुतायत में पाई गयी हैं, पुरूषों से अधिक महिलाओं की मूर्तियां हैं, जीव जन्तु, पशु-पक्षी, खिलौने, घरेलू उपकरण इत्यादि से सम्बन्धित मूर्तियों के भी प्रमाण हैं।
- ये मूर्तियां अनगढ़ (अकुशलता से बनाई हैं) और इसका उद्देश्य सम्भवत: मनोरंजन एवं धार्मिक रहा होगा। ये मूर्तियां समाज के आम लोगों के विचारों को समझने का एक महत्वपूर्ण माध्यम हैं। मूर्ति निर्माण की यह परम्परा आज भी हमारे जीवन में देखी जा सकती हैं।
- पत्थर की मूर्तियों के साक्ष्य मुख्यत: मोहनजोदड़ों और हड़प्पा से प्राप्त हुए हैं। मोहनजोदड़ो से सर्वाधिक मूर्तियां मिली हैं। इनमें एक प्रसिध्द हैं दाढ़ीयुक्त एक व्यक्ति की मूर्ति जोकि तिब्बतया पैटर्न के वस्त्र को धारण किये हुए है। इसीप्रकार हड़प्पा से नृत्य करते हुए युवक के धड़ की मूर्ति मिली हैं।
- पत्थर के साथ साथ धातु के मूर्तियों के भी साक्ष्य मिलते हैं। जैसे मोहनजोदड़ो से कांसे की नर्तकी, दैमाबाद से कांसे की इक्कागाड़ी
- इन मूर्तियों के विषय को देखें तो सम्भवत: आम जीवन के विभिन्न पहलुओं को प्रतिनिधित्व करने वाली हैं। जैसे नृत्य, परिवहन इत्यादि
- मूतियों के निर्माण में सौंदर्य तथा शारीरिक अनुपात का विशेष ध्यान रखा गया हैं और यथार्थवादी तरीके से मूर्तियों में भावों को अभिव्यक्त किया गया हैं।
- तकनीकी दृष्टिकोण से भी देखें तो धातु की मूर्तियों के निर्माण में द्रव मोम विधि का प्रयोग किया गया हैं। यह विधि आज भी प्रचलित हैं।
- संभवत: पत्थर एवं धातु की मूर्तियां समाज के उच्च वर्गीय दृष्टिकोण का प्रतिनिधित्व करती होगी।
सिंधु घाटी सभ्यता की चित्रकला
- सिंधु घाटी सभ्यता के चित्रों के प्रमाण बर्तनों से प्राप्त होते हैं।
- चित्रों के प्रमुख विषय है पशु-पक्षी, वनस्पति एवं मानव के कुछ प्रमुख चित्र हैं। लोथल से प्राप्त एक बर्तन पर लोमड़ी का चित्र, हड़प्पा से प्राप्त एक मछुआरे का चित्र तथा पेड़ पौधों से सम्बन्धित चित्रों में पीपल एवं नीम का चित्रण इत्यादि।
- चित्रों में अधिकांशत: लाल एवं काले रंग का प्रयोग किया गया हैं। बर्तनों पर चित्र निर्माण की परम्परा हम आज भी देख सकते हैं। सम्भवत: इन बर्तनों का व्यवसायिक दृष्टिकोण से महत्व रहा होगा।
सिंधु घाटी सभ्यता का पतन
सिंधु घाटी सभ्यता के पतन के अनेक कारण माने जाते हैं जैसे-
- अचानक/आकस्मिक- बाढ़ के दूारा, नदी मार्ग में परिवर्तन, भूकम्प के कारण, आग लगने के कारण, आर्यों के आने के कारण इत्यादि।
- क्रमिक पतन (यह सर्वमान्य मत हैं)- पर्यावरण असंतुलन के कारण।
सिंधु घाटी सभ्यता वीडियो
Final Words-
मैं उम्मीद करता हूँ आपको ये सिंधु घाटी सभ्यता – Indus Valley Civilization पोस्ट बहुत ज्यादा पसंद आया होगा। अगर आपको प्राचीन भारतीय इतिहास की सिंधु घाटी सभ्यता (Indus Valley Civilization) के बारे में पोस्ट पसंद आया हैं तो हमें कमेंट करके जरूर बताये ताकि हम आपके लिये और भी अच्छे तरीके से नये नये टॉपिक लेकर आयें। जिससे आप अपने किसी भी एग्जाम की तैयारी अच्छे से कर सकें। धन्यवाद
नोट:- सभी प्रश्नों को लिखने और बनाने में पूरी तरह से सावधानी बरती गयी है लेकिन फिर भी किसी भी तरह की त्रुटि या फिर किसी भी तरह की व्याकरण और भाषाई अशुद्धता के लिए हमारी वेबसाइट My GK Hindi पोर्टल और पोर्टल की टीम जिम्मेदार नहीं होगी |
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