ज्वार भाटा किसे कहते हैं?, उत्पत्ति, प्रकार, लाभ और हानि | Jwar Bhata Kise Kahate Hain

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अगर आप ज्वार भाटा किसे कहते हैं (Jwar Bhata Kise Kahate Hain), ज्वार भाटा की उत्तपत्ति कैसे होती हैं, इसके प्रकार और लाभ तथा महत्व के बारे में जानना चाहते हैं, तो इस पोस्ट को आगे पढ़ते रहे क्योंकि आज की इस पोस्ट में आप Jwar Bhata Kise Kahate Hain और इससे जुड़े रोचक तथ्यों के बारे में विस्तार से जानेंगे।

Jwar Bhata Kise Kahate Hain

Table of Contents

ज्वार भाटा किसे कहते हैं? – Jwar Bhata Kise Kahate Hain

Jwar Bhata Kise Kahate Hain: दोस्तों ज्वार भाटा समुद्र में आता हैं अर्थात जब समुद्र का पानी अपनी औसत से ऊपर उठता हैं, तो उसे हम ज्वार कहते हैं और जब वह अपनी औसत सतह से नीचे चला जाता हैं, तो उसे हम भाटा कहते हैं। समुद्र का पानी सामान्य सतह से 24 घंटे (एक दिन) में दो बार ऊपर उठ जाता हैं और दो बार नीचे चला जाता हैं।

पानी के ऊपर और नीचे जाने की प्रक्रिया को ही हम ज्वार भाटा कहते हैं। ज्वार भाटा कहीं ज्यादा और कहीं कम आता हैं अर्थात किसी संकीर्ण खाड़ी के नजदीक ज्वार भाटा बहुत ही तेज और ऊपर तक उठ जाता हैं, क्योंकि संकीर्ण खाड़ी में इसी पर्याप्त जगह नहीं मिलती, जिसके चलते समुद्र का पानी बहुत ऊपर तक उठ जाता हैं।

ज्वार भाटा क्यों आता है (Why Tides Occur)

दोस्तों समुद्र में ज्वार भाटा आने का कारण चन्द्रमा और सूर्य की आर्कषण शक्ति हैं। किसी भी वस्तु में अगर द्रव्यमान हैं, तो उसमें एक आकर्षण भी होता हैं। जितनी अधिक वस्तु उतना ज्यादा द्रव्यमान और उतना ही ज्यादा आर्कषण होता हैं। चन्द्रमा पृथ्वी के नजदीक 2.84 हजार किलो मीटर और चंद्रमा के छोटे होते हुए भी चंद्रमा पृथ्वी पर अपनी आर्कषण शक्ति अधिक लगाता हैं।

सूर्य बड़ा तो हैं लेकिन पृथ्वी से बहुत दूर 14.98 करोड़ किलो मीटर हैं। यहीं कारण हैं, कि ज्वार भाटा में मुख्य भूमिका चन्द्रमा के आकर्षण शक्ति की होती हैं, अर्थात चन्द्रमा अपनी आर्कषण के द्वारा पृथ्वी से वस्तुओं को अपनी तरफ खींचना चाहता हैं।

इसी प्रकार जल अपने आकार को बहुत ही आसानी से बदल देता हैं तथा ठोस नहीं बदल पाता। जिसके चलते पृथ्वी का जल चंद्रमा की आर्कषण शक्ति की वजह से उसकी तरफ खींच जाता हैं।

वास्तव में पृथ्वी पर महासागर के रूप में जलराशि हैं तो वह चंद्रमा की ओर खींचना चाहती हैं, तो सागर की वहीं सतह उठेगी जिसके सामने चंद्रमा होता हैं, अर्थात धरती के जिस महासागरीय बिन्दु के ऊपर चंद्रमा होता हैं, उस महाशागरीय बिन्दु में उठान आता हैं। जिस बिन्दु पर महासागरीय बिन्दु में उठान आता हैं उन्ही जगहों पर ज्वार आता हैं।

अर्थात पूरी पृथ्वी पर ज्वार एक साथ 2 जगहों पर आता हैं। एक तो चंद्रमा के सामने वाले भाग पर और दूसरा पृथ्वी के विपरीत वाले भाग पर साथ साथ 2 ज्वार आते हैं।

पृथ्वी की विपरीत सतह पर ज्वार इसलिए आता हैं, कि आप कल्पना कीजिए कि आप 25 से 30 किलो की बोरी हाथ में लेकर चल रहे हैं, तो आप अपने हाथ के वजन के संभालने के लिए हल्का सा पीछे की तरफ झुकेंगे अर्थात अपने पीछे की तरफ एक ताकत लगाते हैं, परिणामस्वरूप आपको अगर वजन लेकर चलना हैं, तो आप सीधे नहीं चल सकते। आपको पीछे की तरफ जोर लगाना होता हैं।

पीछे जोर इसलिए लगाते हैं, ताकि आगे जो बल लगाया जा रहा हैं, उसे आप सन्तुलित कर सकें। इसे विपरीत/अपकेन्द्रीय बल कहते हैं। ठीक इसी प्रकार पृथ्वी घूर्णन करती हैं। अगर चंद्रमा पृथ्वी से चीजों को खींचना चाहता हैं, तो पृथ्वी अपने घूर्णन गति को संतुलित बनाए रखने के लिए चंद्रमा के विपरीत एक बल लगाती हैं।

इसे अपकेन्द्रीय बल कहते हैं। यहीं कारण हैं, कि विपरीत दिशा की जलराशि पीछे की ओर ऊपर उठ जाती हैं, और इसलिए इसी तरह से एक समय में 2 जगहों पर ज्वार आता हैं।

ज्वार भाटा कब आता हैं? – Jwar Bhata Kab Aata Hai

दोस्तों जैसे कि आपको ऊपर बताया गया हैं, कि ज्वार भाटा चंद्रमा और सूर्य के आर्कषण शक्ति के कारण आते हैं। चूँकि पृथ्वी, चंद्रमा और सूर्य अपने अपने अक्ष पर घूमते रहते हैं, तो जब जब सूर्य और चंद्रमा की आर्कषण शक्ति पृथ्वी पर पड़ती हैं, तो ज्वार भाटा आते हैं।

अर्थात पृथ्वी पर 24 घंटे (एक दिन) में 2 जगहों पर ज्वार और 2 जगहों पर भाटे आते रहते हैं। लेकिन सूर्य गृहण और चंद्रगृहण जैसी परिस्थितयों में महासागरीय जल बहुत ऊपर तक उठ जाता हैं, क्योंकि चंद्रमा पृथ्वी के बहुत नजदीक आ जाता हैं, तो चंद्रमा पृथ्वी पर बहुत ज्वादा आकर्षण शक्ति लगाता हैं। जिसके चलते जल बहुत ऊपर तक चला जाता हैं।

पृथ्वी पर अगर अगल 2 जगहों पर एक ही समय में दो जगहों पर ज्वार तथा दो जगहों पर भाटा आता हैं, यानि दो जगहों पर सागर सतह ऊपर उठती हैं, और दो जगहों पर सागर सतह नीचे चली जाती हैं।

24 घंटे में एक ही स्थल पर दो बार ज्वार और दो बार भाटा आता हैं, क्योंकि पृथ्वी 24 घंटे में 1 घूर्णन पूरा करती हैं। इसीलिए चंद्रमा के सामने वाले ज्वार पीछे और पीछे वाला ज्वार घूमकर आगे आ जाता हैं। इसी तरह भाटा भी घूमकर अपनी जगह बदल लेता हैं।

एक ज्वार के 6 घंटे बाद भाटा आयेगा, एक ज्वार के 12 घंटे के बाद फिर ज्वार आयेगा। एक ज्वार के 18 घंटे के बाद फिर भाटा आयेगा तथा एक ज्वार के 24 घंटे के बाद फिर ज्वार आयेगा।

ज्वार भाटा की उत्पत्ति

हम सभी जानते हैं, कि पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा करते हुए अपनी धूरी पर घूमती रहती हैं, और चंद्रमा भी पृथ्वी के चक्कर लगाता हैं, तो जब चंद्रमा पृथ्वी के नजदीक आता हैं तो वह अपना गुरुत्वाकर्षण बल लगाता हैं, तो चंद्रमा के गुरुत्वाकर्षण बल के कारण पृथ्वी पर मौजूद ठोस चीजें अपना आकार नहीं बदलती लेकिन महासागरीय जल अपना आकार बदल देता हैं, अर्थात वह चंद्रमा की ओर खींचना चाहता हैं।

इसी स्थितियों के ज्वार भाटा कहते हैं, और जब सूर्य और चंद्रमा अपनी गुरुत्वाकर्षण शक्ति पृथ्वी पर लगाते हैं, तो ज्वार भाटा की उत्पत्ति होती हैं।

पृथ्वी, चंद्रमा और सूर्य की पारस्परिक गुरूत्वाकर्षण शक्ति की क्रियाशीलता ही ज्वार भाटा की उत्पत्ति का प्रमुख कारण हैं।

ज्वार भाटा के प्रकार – Jwar Bhata Ke Prakar

ज्वार भाटा के उत्पन्न होने की अलग अलग स्थितियां होती हैं। इन्हीं स्थितियों को ज्वार भाटा के प्रकार कहते हैं, जैसे दीर्घ ज्वार, निम्न ज्वार, दैनिक ज्वार, अर्द्धदैनिक ज्वार, मिश्रित ज्वार आदि। तो आइये एक एक करके इनके बारे में भी जानते हैं।

दीर्घ ज्वार या उच्च ज्वार (SPRING TIDE)

जब चंद्रमा पृथ्वी की परिक्रमा करते हुए पृथ्वी और सूर्य के बीच में आ जाता हैं, अर्थात पृथ्वी, चंद्रमा और सूर्य एक सीधी रेखा में आ जाते हैं, तो इस स्थिति को दीर्घ ज्वार कहते हैं। जब तीनों एक सीधी रेखा में आ जाते हैं, तो चंद्रमा, सूर्य की आकर्षण शक्ति का प्रभाव सम्मिलित रूप से पड़ता हैं।

ऐसी स्थिति में पृथ्वी की सागरीय/महासागरीय सतह पर अधिक उठान पड़ता हैं अर्थात सागर/महासागर का जल अधिक उठने का प्रयास करता हैं।

दीर्घ ज्वार की दो स्थितियां होती हैं?

  1. पहली स्थिति में चंद्रमा घूमते हुए जब पृथ्वी और सूर्य के बीचों बीच आ जायें, तो इस स्थिति को दीर्ष ज्वार कहते हैं।
  2. दूसरी स्थिति में चंद्रमा बीच में न होकर पृथ्वी, चंद्रमा और सूर्य के बीच में होती हैं, तो इस स्थिति को भी दीर्घ ज्वार कहते हैं।

निम्न ज्वार या लघु ज्वार (NEAP TIDE)

जब पृथ्वी, चंद्रमा और सूर्य एक समकोण की स्थिति में हो, तो निम्न ज्वार आता हैं। जब तीनों समकोण की स्थिति में हो तो चंद्रमा और सूर्य का जो आकर्षण बल हैं, वह एक दूसरे के विपरीत काम करने लगता हैं। जिससे न तो चंद्रमा की आकर्षण शक्ति प्रभावित हो पाती हैं, और न ही सूर्य की आकर्षण शक्ति। परिणामस्वरूप पृथ्वी की सागरीय सतहों पर निम्न ज्वार या लघु ज्वार आता हैं।

अर्द्ध-दैनिक ज्वार (SEMI-DIURNAL)

जब किसी भी स्थान पर दिन में दो बार अर्थात 12 घंटे 26 मिनट में ज्वार भाटा आता हैं, तो इसे अर्ध्द-दैनिक ज्वार कहते हैं। ताहिती द्वीप और ब्रिटिश द्वीप समूह में अक्सर अर्द्ध-दैनिक ज्वार आते हैं.

मिश्रित ज्वार (MIXED TIDE)

जब समुद्र में दैनिक और अर्ध्द दैनिक दोनों प्रकार के ज्वार का अनुभव होता हैं, तो उसे मिश्रित ज्वार कहते हैं।

अयनवृत्तीय और विषुवत रेखीय ज्वार

जब चंद्रमा के झुकाव के कारण इसकी किरणें कर्क रेखा या मकर रेखा के ऊपर सीधी पड़ती हैं, तो उस समय उत्पन्न होने वाले ज्वार को अयनवृत्तीय ज्वार कहते हैं. इस स्थिति में ज्वार और भाटे की ऊँचाई में असमानता होती है, अर्थात एक समान ऊँचाई नहीं होती हैं, और जब चाँद की किरणें विषुवत रेखा के ऊपर लम्बवत पड़ती है तो उस समय जवार-भाटे की स्थिति में असमानता आ जाती है, तो ऐसी स्थिति में आने वाले ज्वार को विषुवत रेखीय ज्वार कहते हैं।

ज्वार भाटा में अंतर – Jwar Bhata Mein Antar

ज्वार भाटा में सिर्फ छोटा सा अंतर होता हैं, अर्थात जब सागरीय/महासागरीय जल चंद्रमा और सूर्य की गुरुत्वाकर्षण शक्ति के कारण ऊपर उठता हैं, तो उसे ज्वार कहते हैं, और जब महासागरीय जल नीचे चला जाता हैं, तो उसे भाटा कहते हैं।

दोस्तों जब ज्वार भाटा आता हैं, तो इसमें ज्वारीय तरंगे निकलती हैं। जिनमें गतिज ऊर्जा बहुत ज्यादा होती हैं।

ज्वार भाटा के महत्व – Jwar Bhata Ka Mahatva

  • दोस्तों जब ज्वार भाटा आता हैं, ज्वारीये तरंगे जोकि महाद्वीपों के तट की तरफ बढ़ने लगती हैं। उन ज्वारीय तरंगों में गतिज ऊर्जा बहुत ज्यादा होती, तो ये गतिज ऊर्जा महाद्वीपों के तटों पर जाकर टकराती हैं, तो इस ऊर्जा का दोहन करने के लिए तटों पर विद्युत संयंत्र लगा देते हैं, और गतिज ऊर्जा का उपयोग करके विद्युत संयंत्रों से बिजली उत्पादन करते हैं।
  • भारत में ज्वारीय ऊर्जा केंद्र खम्भात की खाड़ी के नजदीक लगाने का प्रयास किया जा रहा हैं।
  • ज्वार चारों ओर पानी ले जाकर और पोषक तत्वों को वितरित करके समुद्री जीवन का समर्थन करने में सहायता भी करते हैं।
  • ज्वार तरंगें तटीय क्षेत्रों में कटाव और बाढ़ को प्रभावित कर सकता है, इसलिए तट के प्रबंधन के लिए उन्हें समझना महत्वपूर्ण है।
  • ज्वार मछली पकड़ने को बढ़ावा देता हैं, क्योंकि ज्वार के आधार पर पानी की गहराई बदल जाती है।
  • ज्वार तैराकी और सर्फिंग जैसी मनोरंजक गतिविधियों को भी बढ़ावा देता हैं।
  • ज्वारीय ऊर्जा जनरेटर के माध्यम से ज्वार नवीकरणीय ऊर्जा का स्रोत के रूप में भी प्रयोग की जाती हैं।

ज्वार भाटा के लाभ – Jwar Bhata Ke Labh

जब ज्वार भाटा आता हैं, तो ज्वारीय तरंगे तटों की गतिशील होती हैं, तो ज्वार भाटा के निम्नलिखित लाभ हैं।

  • जब ज्वारीय तरंग तटों की तरफ गति करती हैं, तो ज्वारीय तरंगों के साथ कुछ मछलियाँ तटों पर आ जाती हैं। जिससे वहां रहने वाले लोगों के लिए एक जीविका का साधन बन जाती हैं।
  • ज्वारीय तरंगों का उपयोग करके विद्युत का उत्पादन किया जाता हैं, क्योंकि इसमें गतिज ऊर्जा होती हैं।
  • जब यह ज्वारीय तरंगे वापस समुद्र की लौटती हैं, तो समुद्र के तटों पर पहले से मौजूद सारी गदंगी को अपने साथ ले जाती हैं। जिससे समुद्र तट स्वच्छ हो जाते हैं।
  • ज्वारीयों तरंगों के माध्यम समुद्रों में मौजूद विभिन्न प्रकार के रत्न जैसे संख, सीप, मोती, मूंगा समुद्र के तटों पर आ जाते हैं। जिनकों ढूंढना आसान हो जाता हैं।
  • ज्वार समुद्र में मौजूद पोषक तत्वों को वितरित करने में मदद करता हैं, जो समुद्र के पारिस्थितिक तंत्र के लिए बहुत ही लाभदायक होते हैं।

ज्वार भाटा से हानि – Jwar Bhata se Hani

दोस्तों जब ज्वार भाटा आता हैं, तो इससे कुछ हानि भी होती हैं, तो आइये ज्वार भाटा से होने वाली हानि के बारे में जानते हैं।

  • ज्वारीय तरंगों की तीर्व गति होने के कारण जब यह जहाजों के विपरीत दिशा में चलती हैं, तो जहानों को बहुत ज्यादा परेशानी होती हैं।
  • ज्वार भाटा के कारण समुद्र के तटीय और निचले इलाके में बाढ़ जैसी स्थिति बन जाती हैं, अर्थात वहाँ पर अत्यधिक पानी भर जाता हैं।
  • ज्वारीय ऊर्जा का उपयोग केवल मजबूत ज्वार वाले स्थानों में ही किया जा सकता है, जो व्यापक उपयोग की संभावना को सीमित करता है।

Jwar Bhata Kise Kahate Hain Video

Source: YouTube

Jwar Bhata Kise Kahate Hain FAQs

ज्वार भाटा क्या है तथा यह कैसे उत्पन्न होता है?

ज्वार भाटा चंद्रमा और सूर्य के गुरुत्वाकर्षण बल के कारण उत्पन्न होता हैं। जब चंद्रमा और सूर्य अपने गुर्त्वाकर्षण बल पृथ्वी पर लगाते हैं, तो महासागरीय जल चंद्रमा और सूर्य की तरफ खिंचता हैं, अर्थात ऊपर उठता हैं, तो ऊपर उठने की स्थिति को ज्वार कहते हैं, और जब वह जल नीचे चला जाता हैं, तो उस स्थिति को भाटा कहते हैं।

24 घंटे में ज्वार भाटा कितनी बार आता है?

24 घंटे अर्थात एक दिन में ज्वार भाटा 2 बार आते हैं। ज्वार भाटा 24 घंटों में एक ही स्थल पर दो बार आते हैं।


ज्वार भाटा क्या है यह कितने प्रकार के होते हैं?

जब सागरीय/महासागरीय जलराशि अपनी औसत सतह से ऊपर उठता हैं, तो उसे ज्वार और जब वह नीचे धँसता हैं, तो भाटा कहते हैं। यह कई प्रकार के होते हैं। जैसे दीर्घ ज्वार, निम्न ज्वार, दैनिक ज्वार, अर्द्ध दैनिक ज्वार, मिश्रित ज्वार (Mixed Tides) …
अयनवृत्तीय और विषुवत रेखीय ज्वार आदि।


विश्व का सबसे ऊंचा ज्वार भाटा कौन सा है?

विश्व का सबसे ऊँचा ज्वार उत्तरी अमेरिका के तट पर फंडी की खाड़ी में आता हैं, क्योंकि यह खाड़ी बहुत ज्यादा संकरी हैं। फंडी की खाड़ी में 18 मीटर का ज्वार आता हैं, यानि 18 मीटर की ऊँचाई तक जल उठ जाता हैं, अर्थात खाड़ी जितनी संकरी होती हैं, जल स्तर उतना ही ऊपर उठ जाता हैं।

ज्वार भाटा कब होता है?

वास्तव में ज्वार भाटा तब आता हैं, जब पृथ्वी और चंद्रमा घूमते हुए एक दूसरे के नजदीक आ जाये, और चंद्रमा और सूर्य की आकर्षण शक्ति का प्रभाव पृथ्वी पर पड़े तो ज्वार भाटा उत्पन्न होता हैं।

भारत का सबसे ऊँचा ज्वार भाटा कहाँ आता है?

भारत का सबसे ऊँचा ज्वार भाटा खंभात की खाड़ी में आता हैं, क्योंकि यह भारत की सबसे संकरी खाड़ी हैं, जोकि गुजरात के तट पर स्थित हैं।

Final Words

मैं उम्मीद करता हूँ, आपको ये ज्वार भाटा किसे कहते हैं? – Jwar Bhata Kise Kahate Hain से जुड़ा पोस्ट बहुत ज्यादा पसंद आया होगा।

अगर आपको भूगोल का ज्वार भाटा किसे कहते हैं? – Jwar Bhata Kise Kahate Hain, के बारे में पोस्ट पसंद आया हैं, तो हमें कमेंट करके जरूर बताये ताकि हम आपके लिये और भी अच्छे तरके से नये-नये टॉपिक लेकर आयें।

जिससे आप अपने किसी भी एग्जाम की तैयारी अच्छे से कर सकें, धन्यवाद

नोट:- सभी प्रश्नों को लिखने और बनाने में पूरी तरह से सावधानी बरती गयी है लेकिन फिर भी किसी भी तरह की त्रुटि या फिर किसी भी तरह की व्याकरण और भाषाई अशुद्धता के लिए हमारी वेबसाइट My Hindi GK पोर्टल और पोर्टल की टीम जिम्मेदार नहीं होगी |

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