मौर्य साम्राज्य का उदय एवं पतन, प्रशासन, अर्थव्यवस्था, समाज, कला एवं स्थापत्य – My Hindi GK

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मौर्यकाल (Maurya Empire): मौर्य साम्राज्य की स्थापना चंद्रगुप्त मौर्य ने की थी। लगता हैं, वह साधारण कुल का था। ब्राह्मण परंपरा के अनुसार उसकी माता शूद्र जाति की मुरा नामक स्त्री थी जो नंदों के रनवास में रहती थी। लेकिन पुरानी बौद्ध परंपरा से ज्ञात होता हैं कि नेपाल की तराई से लगे गोरखपुर में मोर् नामक क्षत्रिय कुल के लोग रहते थे। संभव है कि चंद्रगुप्त इसी वंश का था।

चंद्रगुप्त मौर्य अपने शासन के अंतिम दिनों में जो नंदों की कमजोरी और बदनामी बढ़ती जा रही थी, उसका फायदा उठाते हुए कौटिल्य नाम से विदित चाणक्य की सहायता से नंद राजवंश का तख्ता पलट दिया और मौर्यवंश का शासन कायम किया। मौर्य काल (Maurya Empire) 322 ईसापूर्व से 185 ईसापूर्व तक माना जाता हैं।

मौर्य साम्राज्य
मौर्य साम्राज्य (Maurya Empire)

Table of Contents

मौर्यकालीन श्रोत

भारतीय इतिहास में मौर्य राजवंश/मौर्य काल की जानकारी 2 श्रोतों के आधार पर मिलती हैं। एक साहित्यिक श्रोत (कौटिल्य का अर्थशास्त्र, विशाखादत्ता का मुद्राराक्षस, मेगास्थानीज की इंडिका, बौद्ध साहित्य और पुराण) हैं और दूसरा पुरातात्विक श्रोत (अभिलेख, सिक्के, कलात्मक साक्ष्य एवं भौतिक साक्ष्य आदि)। मौर्यकालीन व अशोककालीन अभिलेख।

अशोक पूर्व मौर्यकालीन अभिलेख

  • महस्थान वांग्लादेश
  • सौहगोरा(उ0प्र0)

अशोक काल /अशोक के पश्चात् (अशोक के अभिलेख – शिलालेख, स्तंभलेख, गुफा लेख)

मौर्य साम्राज्य में अशोक के द्वारा बनाये गए 3 तरह के अभिलेखों की जानकारी मिलती हैं।

  • वृहद शिलालेख
  • पृथक शिलालेख
  • लघुशिलालेख

अशोक के वृद्ध शिलालेख 8 स्थानों से प्राप्त हुए है

  1. कालसी
  2. मानसेहरा
  3. सहवाजगढ़ी
  4. गिरनार
  5. सोपारा
  6. येर्रागुडी
  7. जोगढ़
  8. धोली

इस पर 14 आदेश उत्कीर्ण हैं।

  • प्रथम आदेश में पशु हत्या पर प्रतिबंध का उल्लेख है (पूर्णत: नहीं)
  • 5 वे आदेश में धम्ममहामात्र नामक अधिकारी का उल्लेख।
  • 7 वे आदेश में प्रजा को अपने धर्म की प्रशंसा और दूसरे धर्म की निंदा करने से मना करता हैं।
  • 13 वें आदेश में शासन के 9वे वर्ष में कलिंग के साथ युद्ध का उल्लेख हैं।
  • अपने उत्तराधिकारियों को युद्ध के रास्ते पर न चलने की सलाह देता हैं तथा द0 तथा उ0प0 में पड़ोसी राज्यों का उल्लेख हैं। जैसे – चेर, चोल, पाण्ये, सतियपुत्र और उ0प0 में सीरिया  मिश्र इत्यादि राज्यों का

अशोक के प्रथक शिलालेख

जोगढ़ एवं धोली से जो वृद्ध शिलालेख प्राप्त हुए हैं। उस पर आदेश न0 11 ,12 और 13 नहीं हैं। इसमें अधिकारियों को, प्रजा को याचना न देने के लिए कहा गया हैं। एवं प्रजा को संतान भी कहा गया हैं।

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अशोक के लघु शिलालेख

बड़ी संख्या में लघु शिलालेख देश के अलग-2 हिस्सों से प्राप्त हुए है इनमें कुछ प्रमुख है।

  • मास्की (कर्नाटक)
  • गुर्जरा
  • नेटटूर
  • अदगोलन
  • अब्रु
  • कंधार

अशोक के स्तंभलेख

  • श्रंखला बद्ध आदेश- 6 स्थानों से 7 आदेश की जानकारी
    • (1) – दिल्ली टोपरा (2) दिल्ली मेरठ (3) लोरीया अरराज (4) लोरीया नंदनगढ़ (5) रामपुरबा (6) प्रयाग
  • सांची शारनाथ
  • रुम्मिन देई, निग्गिलीवा

अशोक के कल्याणकारी कार्यों का उल्लेख 7 वे आदेश में तथा धम्म की परिभाषा दी गयी हैं (दूसरे आदेश में)

संघ भेदक- सांची एवं शारनाथ के स्तंभलेखों में बौद्ध संप्रदाय में फूट डालने वालों को चेतावनी दी गयी है

नोट – अशोक के अधिकांश अभिलेखों में उसे देवानामप्रिय कहा गया हैं।

  • अशोक के अभिलेख को सर्वप्रथम जेम्सप्रिंसेप नामक विद्वान ने 1837 मे पड़ा था।
  • 1915 में मास्की के लघुशिलालेख से सर्वप्रथम अशोक का नाम का पता चला।
  • अशोक के अधिकांश अभिलेख प्राकृत भाषा एवं व्राह्मी लिपि में है । मानसेहरा एवं शहबाजगढ़ी खरोष्टी लिपि में हैं।
  • कंधार का अभिलेख यूनानी एवं अरमाइक लिपि में है,

मौर्यकालीन साहित्यिक स्रोत

(1) मेगास्थनीज का इंडिका- यूनानी शासक सेल्युकस का दूत था और चन्द्रगुप्त के दरबार में आया था। इंडिका की मूल प्रति उपलब्ध नहीं हैं।

(2) कौटिल्य/विष्णुगुप्ता/चाणक्य- अर्थशास्त्र। (भारत की राजव्यवस्था के ऊपर भारत की सबसे प्राचीन पुस्तक)

मौर्य प्रशासन के संदर्भ में चाणक्य के कुछ महत्वपूर्ण विचार

  • राजा एवं मंत्रियों के उत्तम चरित्र पर बल
  • प्रजा के कल्याण में ही राजा का कल्याण।
  • प्रजा के कार्यों के लिए राजा एवं अधिकारियों को हमेशा उपलब्ध होना चाहिए।
  • अधिकारियों का सबसे महत्वपूर्ण कार्य हैं, नीतियों का कार्यवयन
  • सामाजिक रूप से कमजोर वर्गों के कल्याण के लिए भी राज्य को उपाय करने चाहिए
  • एक शसक्त सेना एवं कुशल गुत्तचर प्रणाली राज्य की सुरक्षा के लिए आवश्यक हैं तथा प्रभावी प्रशासन के लिए का प्रशासन की कुशलता भी आवश्यक हैं।
  • पड़ोसी का पड़ोसी मित्र होता हैं।
  • अन्य श्रोत- विष्णु पुराण, मालविकाग्निमित्र(कालिदास), मुद्राराक्षस (विशालदत्त),परिशिष्ट पर्वन(हेमचन्द्र), राजतरंगनी(कल्हण), वंश साहित्य, अवदान साहित्य, फाहयान, ह्वेनसांग

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चन्द्रगुप्त मौर्य (322 ईसापूर्व – 298 ईसापूर्व)

  • मौर्य वंश का संस्थापक
  • चाणक्य की सहायता से चन्द्रगुप्त ने एक सेना का गठन किया और सिकन्दर के प्रस्थान के पश्चात्, राजनैतिक रिक्तता का लाभ उठाते हुए सर्वप्रथम उ0प्र0 भारत पर नियत्रंण किया और फिर अंतिम नंद शासक घनानंद को पराजित कर मगध पर नियंत्रण
  • 305 ईसापूर्व में यूनानी शासक सैल्यूकस को पराजित किया और युनानी राजकुमारी से विवाह भी।
  • अत्यतं ही कम समय में एक विशाल साम्राज्य की स्थापना जिसमें बांग्लादेश से गुजरात और काबुल से लेकर कर्नाटक तक का क्षेत्र था (उड़ा नही)
  • चन्द्रगुप्त मौर्य जैन धर्म का अनुयायी था और ऐसी मान्यता है, कि संलेखना के द्वारा इसने शरीर का त्याग किया था।
  • यूनानी स्रोत में चन्द्रगुप्त को सेण्ड्रोकोटस/ ऐण्ड्रोकोटस कहा गया है। सर्वप्रथम विलियम जोन्स नामक विद्वान ने सैण्ड्रोकोटस की पहचान चन्द्रगुप्त मौर्य के रुप मे की थी।

अशोक (272 ईसापूर्व – 212 ईसापूर्व)

  • अशोक को विरासत में एक विशाल साम्राज्य मिला था। अशोक ने शासन के नौवे वर्ष में कलिंग को जीता और जब तक जीवित रहा पूरे साम्राज्य पर उसकी पकड़ बनी रही ।
  • निम्नलिखित कारणो से अशोक प्रारम्भ में शैव संप्रदाय का अनुयायी था। लेकिन आगे चलकर उसने बौद्ध धर्म को अपनाया अशोक के लघु शिलालेखों से भी इस तथ्य की पुष्टि होती है।
  • अशोक को निम्मलिखित कारणों से भारतीय इतिहास में महानतम शासकों की श्रेणी में रखा जाता है।
  • प्रजा के प्रति प्रेम।
  • प्रजा के कार्यों को ऋण समझकर करना।
  • प्रजा को संतान के रूप में देखना, प्रजा से सम्बन्धित कार्यों के लिए कभी भी तैयार रहना प्रजा की स्थिति को समझने के लिए धम्म यात्राओं का आयोजन।
  • लोक कल्याणकारी कार्यों के कारण विशेष रुप से अशोक की चर्चा होती है जैसे- विशामग्रह की स्थापना, मानव एवं पशुओ की चिकित्सा की सुविधा , पेयजल की व्यवस्था, वृक्षारोपण आदि।
  • बौद्ध धर्म का अनुयायी होने के बावजूद समाज के सभा संप्रदायों के प्रति सहिष्णुता की नीति तथा प्रशासनिक नीतियों व कल्याणकारी कार्यों में किसी के साथ भेद भाव के उदाहरण नहीं मिलते हैं।
  • एक विशाल एवं विविदततायुक्त साम्राज्य तथा शसक्त सेना के बावजूद समस्याओं के समाधान में सैन्य शक्ति की तुलना में नैतिक आचरण पर ज्यादा बल देता था।
  • इतनी ही नहीं पड़ोसी राज्यों के साथ भी मित्रवत संबंधो की बात पर बल देता है और उत्तराधिकारियों को भी युद्ध के रास्ते पर न चलने की सलाह देता है।
  • एक तरफ अशोक सांस्कृतिक विविधता का सम्मान करता है तो दूसरी तरफ संपूर्ण भारत वर्ष को भाषाई एक सूत्र में बांधने की कोशिश थी।

अशोक की धम्म नीति

  • संस्कृत शब्द धर्म का प्राकृत रुप है धम्म। अशोक अपनी धम्म नीति को लेकर भी भारतीय इतिहास में चर्चा का विषय है। धम्म एक धर्म न होकर एक प्रकार की आचार संहिता थी जिसमे व्यक्ति , परिवार, समाज एवं राज्य को किस रास्ते पर चलना चाहिए उसका उल्लेख हैं,
  • इसके अन्तर्गत अशोक ने अहिंसा, सहिष्णुता, दया, साधु, संतों एवं माता-पिता का सम्मान जैसे तत्वों पर बल दिया है। साथ ही क्रोध , घमंड , ईर्ष्या इत्यादि से बचने की सलाह तथा कर्मकांडो से बचने की सलाह और समय-2 पर व्यक्ति को आत्मनीरीक्षण करने का सुझाव भी देता है।

अशोक के पश्चात् शासक

  • मगध- दशरथ वृहदरथ(अंतिम शासक)- हत्या – पुष्यमित्र सुंग
  • उज्जैन- सम्प्रति (जैन धर्म का अशोक कहा जाता है)

मौर्य साम्राज्य का प्रशासन

  • मौर्य साम्राज्य के प्रशासन में सर्वोच्च स्थिति राजा की थी और कौटिल्य ने भी राज्य के 7 अंगों में राजा को सर्वोच्च माना हैं। राजा को सलाह देने के लिए अंतरण मंत्री परिषद का उल्लेख भी कौटिल्य ने किया हैं।
  • कोटिल्य न बड़ी सं0 में अधिकारियों का भी उल्लेख किया है। प्रथम श्रेणी के अधिकारियों को तीर्थ/महामात्र/आमात्य कहा गया है।
  • समाहर्ता- कर निर्धारण करने वाला अधिकारी
  • सन्निधता- राज कोष का प्रमुख
  • द्वितीय श्रेणी में 27 अध्यक्षों का उल्लेख अधिकांशत का सम्बंध आर्धिक गतिविधियों से था।
  • पोतवाध्यक्ष- माप तोल का प्रमुख 
  • नवाध्यक्ष- नवपस्विदन
  • शुल्काध्यक्ष- चुंगी वसूलने वाला
  • लक्षनाध्यक्ष- धातुओं की गुणवत्ता की जांच करने वाला
  • अकाराध्यक्ष- खनन का प्रमुख
  • व्यवस्थित राजस्व प्रशासन की जानकारी ,बड़ी स0 में करों का उल्लेख जैसे- (भाग) भूमि राजस्व को कहते हैं (1/6 – 1/4 हिस्सा) प्रणय- आपात कर
  • खनन, शस्त्र, नमक ,वन इत्यादि पर राज्य का एकाधिकार होता था।
  • मौर्य के समय एक विशाल सेना की जानकारी मिलती है (कौटिल्य ने सेना के 4 अंगो का वर्णन किया है। (अश्व/ गुरुस्वार, रथ , गज, पेदल) वहीं मेगास्थनीज ने सेना के 6 अंगो का उल्लेख किया हैं (अश्व, रथ ,गज , पैदल ,नाव सेना)
  • मौर्यो ने एक कुशल गुप्तचर प्रशासन की भी स्थापना  की थी। गुप्तचर के लिए कौटिल्य ने गुढ़पुरुष शब्द का प्रयोग किया है तथा गुप्तचर विभाग के प्रमुख को महामत्यसर्प कहते थे। इसके अतिरिक्त संस्था (एक स्थान पर रहकर गुप्तचर का काम करना) एवं संचर(स्थान बदलकर गुप्तचरी का कार्य करना) जैसे – गुप्तचरों का उल्लेख किया है। गुप्तचर के रुप मेंमहिलाओं की भूमिका की भी जानकारी मिलती है,
  • एक श्रेणीबद्ध न्यायिक ढ़ाचे की भी जानकारी मिलती है। दीवानी मामलों से सम्वंधित न्यायालयों को धर्म स्थल तथा फौजदारी मामलों के न्यायालय को कंटकशोधन कहते थे।
  • मौर्यकाल में केन्द्रीय प्रशासन के साथ-2 प्रांतीय , जिला, मध्यवर्ती स्तर एवं ग्रामीण प्रशासन की भी जानकारी मिलती है।
  • प्रांत- (चक्र)
  • जिला- (विषय/आहार)
  • मध्यवर्ती स्तर
  • ग्रामीण प्रशासन ( प्रमुख-ग्रामिक– नियुक्ति राज्य द्रारा नहीं)
  • जिलास्तर पर युक्त,रज्युक नामक अधिकारियों की महत्वपूर्ण भूमिका मेगास्थनीज ने पाटलीपुत्र नगर प्रशासन के संदर्भ में 6 समीतियों का उल्लेख किया हैं।
  • मौर्य प्रशासन में आने जाने वाले लोगों का रिकॉर्ड रखा जाता था
  • मौर्य प्रशासन केन्द्रीकृत था।

मौर्यकालीन अर्थव्यवस्था

  • मौर्य कालीन अर्थव्यवस्था की एक महत्वपूर्ण योग्यता है राज्य के द्वारा आर्थिक गतिविधियों पर नियंत्रण और अर्थव्यवस्था के सभी क्षेत्रों को नियंत्रित करने के लिए अधिकारियों की बड़े पैमाने पर नियुक्ति।
  • कृषि के क्षेत्र में इस समय सीधा अध्यक्ष के निर्देशन में राजकीय भूमि पर बड़े पैमाने पर कृषि के प्रमाण मिलते हैं।
  • राज्य के द्वारा सिचांई के प्रबंध किये जाने के भी प्रमाण मिलते है। जैसे चन्द्रगुप्त मौर्य ने सौराष्ट्र में सुदर्शन झील का निर्माण कराया और अशोक के समय तुस्साफ नामक अधिकारी ने इसका पुन उदधार कराया (रूद्रदामा के जूनागढ़ अभिलेख से इसकी जानकारी मिलती है)
  • कौटिल्य एवं मेगास्थनीज ने भी राज्य के द्वारा सिंचाई के विकास का उल्लेख किया है।
  • प्राकृतिक आपदा के समय करों से राहत का उल्लेख कौटिल्य करता है।
  • बुद्धकाल की तरह बड़े पैमाने पर शिल्पों एवं श्रेणियों की जानकारी कुच प्रमुख वस्त्र – दुकूल (सूती वस्तर), क्षोम (रेशमी), कौशेय (चीनी रेशम)
  • इस समय वाणिज्य विकास भी हुआ (द0पू0 एशिया के साथ-2 सीरिया, मिक्ष जैसे देशों के साथ व्यापार (केन्द्रीकृत शासन , बेहतर कानून व्यवस्था एवं मौर्य शासकों के द्रारा सड़को का निर्माण, लोक कल्याणकारी कार्य इत्यादि से भी व्यापारिक गतिविधियों को भी गति मिली होगी।
  • उत्तरापथ एवं दक्षिणापथ नामक महत्वपूर्ण मार्ग का उल्लेख।
  • पूर्वीतट पर ताम्रलिपि तथा प0 तट पर सुपारा एवं भृगकच्छ (भड़ौच)
  • समकालीन साहित्यों में व्यापारियों के विभिन्न संगठनों की जानकारी मिलती है जैसे – सार्थवाह-
  • मौर्यकाल में भी आहत सिक्कों का ही प्रचलन  चांदी के सिक्कों को कर्षापण/पण कहते थे और ताँबें के सिक्के को काकिणी /माषक कहते थए। मौर्यकालीन सिक्कों पर मोर, पर्वत, अर्द्धचंद्र , वृक्ष इत्यादि की आकृतियां मिलती है।
  • बुद्ध काल की तरह इस दौर में शहरीकरण की प्रक्रिया आगे की और अग्रसर।

मौर्यकालीन सामाजिक एवं सांस्कृतिक व्यवस्था

  • बुद्धकाल की तरह ही जाति प्रथा, वर्ण व्यवस्था , छूआछूत का प्रचलन
  • हालांकि कौटिल्य ने शूद्र वर्ण के लिए कृषि, पशुपालन के साथ-2 व्यापार के द्रारा भी आजीवीका का समर्थन किया है। साथ ही कौटिल्य ने यह भी कहा कि शूद्रों को दास मंडी बनाया जा सकता हैं।
  • परिवार प्रथा एवं महिलाओं की दशा भी पूर्वर्ती काल की तरह, मौर्यकाल में ज्योतिष, गणिका, गुप्तचर, अंगरक्षक इत्यादि के रुप में महिलाओं की भूमिका की जानकारी मिलती हैं। कौटिल्य ने महिलाओं की तलाक के अधिकार का समर्थन किया हैं।
  • खान-पान, मनोरंजन, पहनावा इत्यादि पूर्ववर्ती काल की तरह
  • आश्रम , पुरुषार्थ , संस्कार इत्यादि का प्रचलन, बड़ी स0 में अनुलोम, प्रतिलोम विवाह की जानकारी तथा उच्च वर्ग राज परिवार में विवाह का भी उल्लेख मिलता है।
  • हालांकि मेगास्थनीज ने भारतीय समाज को 7 वर्गों में बाटा हैं।(संभवत व्यवस्थाय के आधार पर) तता भारतीयों के नैतिक चरित्र की प्रशंसा की है।

मौर्य साम्राज्य का पतन

(8 जे0 बी0 सी0 मे मौर्य के सेनापति पुष्यमित्र सुंग ने अंतिम मौर्य शासक वृहदरथ की हत्या कर दी और सुंग वंश की नींव रखी। मौर्यों के पतन के लिए निम्नलिखित कारणओं को जिम्मेजार ठहराया हैय़

  • अयोग्य उत्तराधिकारी
  • अतिकेद्रीकृत व्यवस्था
  • प्रशासनिक अधिकारियों द्रारा प्रजा पर अत्याचार
  • अशोक की कुछ नीतियों जैसे पड़ोसी राज्यों से मित्रवत व्यवहार ओर उत्तराधिकारियों को युद्ध न करने की सलाह देना तथा अशोक की नीतियों से ब्रांह्मण धर्म में असतोष
  • विशाल साम्राज्य के कारण गंगाघाटी के भौतिक ज्ञान का दक्षिण एवं सीमावर्ती क्षेत्रों में प्रसार
  • विदेशी आक्रमण।

मौर्यकालीन कला एवं स्थापत्य

स्तंभ कला- मौर्यकालीन स्थापत्य/अशोक के स्थापत्य का एक अत्यंत ही वेहतरीन उदाहरण है बड़ी स0 में स्तम्भों का निर्माण। इनका कई प्रकार से वर्गीकरण किया जाता है जैसे – लेखयुक्त स्तंभ, लेख रहित स्तंभ स्वतत्र स्तंभ एवं स्मारक स्तंभ

  • सांची , सारनाथ, प्रयाग , रामपुरवा , दिल्ली , लोरिया अरराज इत्यादि विभिन्न स्थलों से अशोक कालीन स्तंभों के साक्ष्य मिलते हैं।

मौर्यकालीन कला की विशेषताएं

  1. एकाश्मक पत्थर से निर्मित (35 – से 50 फिट तक की ऊंचाई और बजन भी 50 टन के आसपास)
  2. मौर्यकालीन चमकीली पॉलिश से युक्त
  3. शीर्ष पर चोकी
  4. चोकी पर पशुओं की मूर्तियां
  5. उल्टे कमल की आकृति
  6. आधार पर मयुर की आकृति
  7. स्तंभो के आघार पर चौड़ाई अधिक

इन स्तंभों का न केवल कलात्मक द्दष्टिकोण से महत्व हैं बल्कि अशोक के व्यक्तिव उसकी नीतियाँ, साम्राज्य विस्तार इत्यादि को समझने में भी यह आवश्यक हैं।

मौर्यकालीन स्तूप कला

स्तूप क्या होता है?- बुद्ध एवं महत्वपूर्ण भिक्षुओं के अवशेषो पर निर्मित अर्द्धगोलाकार ढ़ाचे को स्तूप कहते हैं।

स्तूप कितने प्रकार के होते हैं?

  1. शारीरिक- बुद्ध के अवशोषों पर निर्मित स्तूप।इन स्तूपों के अवशेष प्राप्त नहीं होते हैं।
  2. पारिभोगिक- बुद्ध के द्वारा प्रयोग में लायी गयी वस्तुओं को केन्द्र में रखकर वस्तुओं का निर्माण
  3. उद्देश्य- बुद्ध के जीवन से सम्वंधित महत्वपूर्ण स्थलों पर स्तूपों का निर्माण
  4. अपसंकलपित- अनुयायियों के द्वारा क्षद्धापूर्वक स्तूपों का निर्माण।

मौर्यकालीन स्तूप

  • ऐसी मान्यता हैं कि अशोक ने 8400 स्तूपों का निर्माण कराया था। हालाकिं इसके ऐतिहासिक साक्ष्य नहीं मिलते हैं लेकिन अशोक के काल में निर्मित स्तूपों के प्रमाण सांची, शारनाथ, एवं तक्षशिला इत्यादि स्थलों से प्राप्त होते हैं।
  • अशोक कालीन स्तूपों के निर्माण में पक्की ईंटो का प्रयोग किया गया ताथ वेदिक एवं तोरण के निर्माण में लकड़ी का प्रयोग किया गया।
  • मौर्यों से पूर्व भी स्तूपों के निर्माण के साहित्यिक साक्ष्य मिलते  हैं कुछ पुरातात्विक साक्ष्य भी लेकिन पर्याप्त भौतिक अवशेष नहीं मिलते हैं।

मौर्यकालीन गुफाएँ/विहार (निवास स्थल)

  • गुफाविहार- मौर्यकाल से मिलने प्रारम्भ हुए।                               
  • संरचनात्मक विहार- गुप्तकाल में मिलने प्रारम्भ हुए।
  • विहार अर्थात भिक्षुओं या संयासियों का निवास स्थल
  • इसका सम्बन्ध वौद्ध, जैन धर्म, ब्राह्मण एवं अन्य संप्रदयों से भी रहा है।
  • मुख्यत: दो प्रकार के विहार स्थापत्य की जानकारी मिलती है
    1. गुफा विहार
    2. संरचनात्मक विहार

हालांकि मौर्य शासको को पूर्व और बुद्ध के काल से ही हमें विहारों के साहित्यिक प्रमाण मिलते हैं लेकिन गुफा विहार या पहाड़ों को काटकर विहार नामक स्थापत्य की शुरुआत का क्षेय मौर्य शासक अशोक को जाता हैं

  • अशोक ने विहार में गया की बरावर पहाड़ियों में 3 विहारों का निर्माण कराया।
    • सुदामा
    • कर्णचोदर
    • विश्व झोपड़ी
  • इसी पहाड़ी में अशोक के पौत्र दशरथ ने भी लोमेश ऋषि नामक विहार का निर्माण कराया गया के नार्गाजुनी पहाड़ी में दशरथ ने गोपिका विहार का भी निर्माण कराया। ये सभी विहार आजीवक संप्रदया को दान में दिए गए थे।
  • विहारों की कुछ सामान्य विशेषताये, है जैसे – संकीर्ण प्रवेशद्रार, छोटे छोटे कमों, तथा मौर्य कालीन चमकीली पोलिश
  • इन विहारों का कलात्मक द्दष्टिकोण से तो महत्व है ही साथ ही शासकों की धार्मिक सहिष्णुता की नीति अन्य संप्रदायों का प्रचलन समकालीन भाषा लिपि भी जानकारी देते हैं।

मौर्यकाल के बारे में अन्य जानकारी

  • मेगास्थानीज ने पटना के नगर नियोजन की जानकारी दी हैं जैसे – नगर के चोरों तरफ दीवार, गहरी खाईयां इत्यादि और कोटिल्य के अर्थशास्त्र में भी नगरों के बसाबत के संदर्भ में इन विशेषताओं का उल्लेख मिलता हैं।
  • पटना के कुक्ररार इलाके से चन्द्रगुप्त मौर्य कालीन राजमहल के अवशेष मिलते है। इसकी प्रशंसा मेगास्थनीज एवं फाह्यान जैसे विदेशी यात्रियों ने भी लिखी हैं।

मौर्यकालीन मूर्तिकला

मौर्य साम्राज्य में दो तरह की मौर्यकालीन मूर्तिकला देखने को मिलती हैं। जोकि इस प्रकार हैं।

  • राजकीय कला                                                     
  • आम लोगों से सम्बंधित
  • मौर्यकाल में राजकीय संरक्षण में भी मूर्तिकला का वकास हुआ।
  • अशोक के स्तंभ एवं अभिलेखों से पत्तर की मूर्तियों के प्रमाण मिलते हैं जैसे धौली एवं कालसी शिलालेख से हाथी की मूर्तियों के साक्ष्य तथा अशोक के स्तंभो के शीर्ष से बड़ी स0 में पशु मूर्तियों के निर्माण रामपुरबा से बैल की मूर्ति, सांची एवं शारनाथ से 4-4 शेर की मूर्ति, शारनाथ के शीर्ष पर 4 सिंह की मूर्तियों के अलावा चौकी के चारों तरफ 4 अन्य पशुओं की मूर्तियां उत्कीर्ण हैं, हाथी, घोड़ा , बैल एंव सिहं, और इन मूर्तियों के ऊपर चक्र भी निर्मित है संभवत: यह शक्ति पर धर्म के विजय का प्रतीक है। इन मूर्तियों की कुछ सामान्य निशेषताये हैं जैसे –
    • मांसपेशियों का उभार
    • शारीरिक अनुपात का विशेष ध्यान
    • सौंदर्य
    • शारनाथ के सिंह की मूर्तियों में लहराते हुए केश(बाल), इन मूर्तियों की जीवन्ता इत्यादि
  • कलात्मक द्दष्टिकोण से इन मूर्तियों का महत्व तो है ही, इन पशु मूर्तियों का धार्मिक महत्व भी है। साथ ही इसके निर्माण के पीछे शासक का संभवत: यह दृष्टिकोण रहा हो कि इन मूर्तियों के कारण लोग राजकीय आदेशों को पढ़े।
  • आम लोगों से सम्बंधित मूर्तियों को दो भागों में वर्गीकृत किया जा सकता हैं।
    • 1- पत्थर से निर्मित यक्ष एवं यक्षिणि की मूर्तियों हैं। जिसका नगर देवी देवता के रुप में महत्व रहा है, और इन मूर्तियों का महत्व वौद्ध, जैन धर्म व सभी संप्रदायों से है। पटना, मथुरा, विदिशा इत्यादि स्थलों से बड़ी स0 में मूर्तियों के प्रमाण मिले है इन मूर्तियों को भी मूर्तिकारों ने अत्यंत ही आकर्षण का भी विशेष ध्यान रखा गया हैं।
    • दूसरे वर्ग में हड़प्पा सभ्यता की तरह ही बड़ी स0 में मिट्टी के खिलौने, जानवर व पशु, पक्षियों से सम्बंधित मूर्तियों के प्रमाण मिलते हैं ये मूर्तियों कला के क्षेत्र में आम लोगों का प्रतिनिधित्व करती हैं।

FAQ (Frequently Asked Question)

मौर्य साम्राज्य की स्थापना कैसे हुई?

मौर्य साम्राज्य की स्थापना चंद्रगुप्त मौर्य ने की थी। बौद्ध परंपरा से ज्ञात होता हैं कि नेपाल की तराई से लगे गोरखपुर में मोर् नामक क्षत्रिय कुल के लोग रहते थे। संभव है कि चंद्रगुप्त इसी वंश का था। चंद्रगुप्त मौर्य अपने शासन के अंतिम दिनों में जो नंदों की कमजोरी और बदनामी बढ़ती जा रही थी, उसका फायदा उठाते हुए कौटिल्य नाम से विदित चाणक्य की सहायता से नंद राजवंश का तख्ता पलट दिया और मौर्यवंश का शासन कायम किया।

चंद्रगुप्त मौर्य और सेल्यूकस निकेटर के बीच युद्ध कब हुआ था?

चंद्रगुप्त मौर्य और यूनानी शासक सेल्यूकस निकेटर के बीच 305 ईसापूर्व युद्ध हुआ था। सेल्यूकस निकेटर सिकंदर का सेनापति था। इस युद्ध में चंद्रगुप्त मौर्य को विजय प्राप्त हुई थी।

मौर्य साम्राज्य की स्थापना कब और किसने की?

मौर्य साम्राज्य की स्थापना चंद्रगुप्त मौर्य ने संभवत: 322 ईसापूर्व से 185 ईसापूर्व में की थी।

अशोक के धर्म से आप क्या समझते हैं?

संस्कृत शब्द धर्म का प्राकृत रुप है धम्म। अशोक अपनी धम्म नीति को लेकर भी भारतीय इतिहास में चर्चा का विषय है। धम्म एक धर्म न होकर एक प्रकार की आचार संहिता थी जिसमे व्यक्ति , परिवार, समाज एवं राज्य को किस रास्ते पर चलना चाहिए उसका उल्लेख हैं,

मौर्य वंश के अंतिम शासक कौन था?

शतधन्वन का पुत्र बृहद्रथ मौर्य साम्राज्य का अन्तिम सम्राट था। बृहद्रथ के सेनापति पुष्यमित्र सुंग ने इसकी हत्या कर सुंग वंश की स्थापना की थी।

Final Words-

मैं उम्मीद करता हूँ आपको ये मौर्य साम्राज्य (Maurya Empire) बहुत ज्यादा पसंद आया होगा। अगर आपको मौर्य काल या मौर्य राजवंश (Maurya Empire) के बारे में ये पोस्ट पसंद आया हैं तो हमें कमेंट करके जरूर बताये ताकि हम आपके लिये और भी अच्छे तरीके से नये नये टॉपिक लेकर आयें। जिससे आप अपने किसी भी एग्जाम की तैयारी अच्छे से कर सकें। धन्यावाद

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