भारत की जलवायु कैसी है?, प्रकार तथा प्रभावित करने वाले कारक | Bharat Ki Jalvayu Kaisi Hai

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Bharat Ki Jalvayu Kaisi Hai: आज की इस पोस्ट में हम भारत की जलवायु कैसी हैं? (Bharat Ki Jalvayu Kaisi Hai), मानसून और जलवायु में अंतर, जलवायु कितने प्रकार की होती है, भारतीय जलवायु की विशेषताएँ, भारत में कितने प्रकार की जलवायु पाई जाती है, जलवायु परिवर्तन क्या है कारण और प्रभाव, उत्तर प्रदेश की जलवायु कैसी हैं? तथा भारत की जलवायु को क्या क्या कहा जाता हैं, विस्तार से जानेंगे।

दोस्तों भारत की जलवायु कैसी हैं यह भारतीय भूगोल का एक महत्वपूर्ण टॉपिक हैं। जिससे जुड़े प्रश्न किसी भी प्रतियोगी परीक्षा में देखने को मिल सकते हैं। इसलिए इस पोस्ट को ध्यान से पढ़ियेगा। यहाँ पर आपके लिए भारतीय जलवायु को बहुत ही आसान भाषा में समझाया गया हैं। साथ ही आप इसकी पीडिएफ (PDF) हमारे टेलिग्राम से डाउनलोड कर सकते हैं। तो आइये जानते हैं Bharat Ki Jalvayu Kaisi Hai और जलवायु के प्रकार तथा जलवायु को प्रभावित करने वाले कारक कौन-कौन से हैं।

Bharat Ki Jalvayu Kaisi Hai

Table of Contents

मौसम किसे कहते हैं? | What Is the Weather

मौसम (Weather): दोस्तों मौसम (Weather) एक निश्चित स्थान पर एक निश्चित समय में जो वायुमंडल में बदलाव होता हैं, उसे ही मौसम (Weather) कहते हैं, जैसे हवा का चलना, अचानक बारिश का होना या अचानक बादल हो जाना, सूर्य का तेज और धीमे होना। एक निश्चित स्थान पर हमारे वायुमंडल मे जो इस तरह की गतिविधियां होती वह मौसम के अंतर्गत ही आती हैं।

जलवायु किसे कहते हैं | Jalvayu Kise Kahate Hain

आपको बता दें कि जब मौसम किसी एक क्षेत्र में लंबे समय तक बना रहता हैं, तो मौसम के दीर्घकालिक पैटर्न और रुझानों को हम जलवायु (Climate) कहते हैं, वैज्ञानिक वर्षा, तापमान, धूप, आर्द्रता, हवा और अन्य पर्यावरणीय कारकों के औसत से जलवायु (Climate) को मापा जाता है।

जलवायु (Climate) किसी क्षेत्र में लम्बे समय तक होती हैं, जोकि लगभग 30 सालों तक हो सकती हैं। लेकिन मौसम की अवधि इतनी लम्बी होती हैं, अर्थात मौसम कम समय में बदलता रहता हैं, वहीं जलवायु (Climate) लम्बे समय तक रहती हैं।

मौसम और जलवायु में क्या अंतर है

इसके अंतर्गत तापमान, वर्षा, आर्द्रता, वायुमंडलीय दबाव, हवा के पैटर्न आदि जैसे कारकों को ध्यान में रखा जाता है। जलवायु कई कारकों से प्रभावित हो सकती है, जैसे अक्षांश, ऊंचाई, समुद्री धाराएं और वातावरण में ग्रीनहाउस गैसों की मात्रा आदि। उदाहरण के लिए, एक रेगिस्तानी क्षेत्र की जलवायु आमतौर पर गर्म और शुष्क होती है, जबकि एक वर्षावन क्षेत्र की जलवायु आमतौर पर गर्म और गीली होती है।

जलवायु के प्रकार | Type of Climate

जैसे कि ऊपर आपको बताया गया हैं, कि जलवायु अक्षांस, ऊँचाई और समुद्री धाराओं के कारण जलवायु प्रवाभित होती हैं। इसीलिए मौसम विभाग और कुछ विद्रानों के अनुसार जलवायु कई प्रकार की होती हैं, जोकि निम्नलिखित हैं।

  • उष्णकटिबंधीय जलवायु (Tropical Climate)
  • मरुस्थलीय जलवायु (Desert Climate)
  • समशीतोष्ण जलवायु (Temperate Climate)
  • महाद्वीपीय जलवायु (Continental Climate)
  • ध्रुवीय जलवायु (Polar Climate)
  • प्रवतीय जलवायु (Mountain Climate)

भारत की जलवायु कैसी है? | Bharat Ki Jalvayu Kaisi Hai

भारत एक उष्णकटीबन्धीय मानसूनी जलवायु वाला देश हैं तथा भारत को मानसूनी जलवायु वाला देश भी कहा जाता हैं। एशिया महाद्वीप में इस प्रकार की जलवायु मुख्यत: दक्षिण एवं दक्षिण पूर्व एशिया में ही पाई जाती हैं। ग्लोब पर कर्क रेखा से मकर रेखा तक के क्षेत्र को उष्णकटीबन्धीय क्षेत्र कहते हैं। चूँकि कर्क रेखा भारत के बीचोबीच से गुजर रही हैं।

जिसका अर्थ यह हुआ कि दक्षिण को जो भारत हैं, वह उष्णकटीबन्धीय क्षेत्र में आता हैं तथा कर्क रेखा से उत्तर का जो भारत हैं, वह शितोष्णकटिबन्धीय क्षेत्र में चला जाता हैं। लेकिन इसके बावजूद भारत एक उष्णकटीबंधीय मानसूनी जलवायु वाला देश हैं। भारत के उष्णकटीबंधीय मानसूनी जलवायु वाला देश होने के 2 कारण हैं, जोकि निम्नलिखित हैं।

प्रथम कारण– चूँकि भारत की उत्तरी सीमा पर स्थित हिमालय पर्वत के होने के कारण साइबेरिया और चीन में चल रही ध्रुवीय जलवायु (अत्यधिक शीतल) भारत में प्रवेश नहीं कर पाती। जिसके चलते भारत में वास्तविक शीत ऋतु नहीं पाई जाती हैं। इस प्रकार हिमालय पर्वत पूरी तरह से जलवायु विभाजक की भूमिका निभाता हैं, अर्थात हिमालय पर्वत की वजह से भारत में कर्क रेखा जलवायु विभाजक की भूमिका नहीं निभा पाती जिसके चलते हिमालय पर्वत के उत्तर में शितोष्ण और हिमालय पर्वत के दक्षिण में उष्णकटिबंधीय जलवायु पाई जाती हैं।

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द्वितीय कारण- कर्क और मकर रेखाओं के बीच उष्णकटीबंधीय क्षेत्र होने के कारण इस क्षेत्र में सागर जल अत्यधिक गर्म हो जाता हैं। जिसके चलते हवाएँ जब गर्म होकर ऊपर उठती हैं, तो सागर जल का वाष्प भी गर्म होकर हवाओं के साथ ऊपर उठता हैं, तो इन उष्णकटीबंधीय क्षेत्रों में साल भर वर्षा होती रहती हैं। यह वर्षा सिर्फ उष्णकटीबंधीय क्षेत्रों में ही होती हैं।

लेकिन हिमालय हिन्द महासागर से आ रही नमी (आर्द्रता) वाली हवाओं को रोककर वर्षा करता हैं। अगर हिमालय नहीं होता तो कर्क रेखा के उत्तर में वर्षा नहीं हो पाती। हिमालय की उपस्थिति से साल भर वर्षा होती रहती हैं। हिमालय की उपस्थिति के कारण दिल्ली में भी वर्षा होती हैं। जबकि दिल्ली कर्करेखा के उत्तर में स्थित हैं।

दो दोस्तों यहाँ तक आप अच्छे से समझ गये होंगे कि भारत की जलवायु कैसी हैं (Bharat ki Jalvayu Kaisi Hai). इसको और अच्छे से समझने के लिए आगे पढ़ते रहिये।

भारत को मानसूनी जलवायु वाला देश क्यों कहते हैं?

मानसून अरबी भाषा का शब्द हैं। जिसका अर्थ मौसम होता हैं। मानसून का अर्थ होता हैं, ऋतु परिवर्तन के साथ साथ हवाओं की दिशाओं में भी विपरीत परिवर्तन। चूँकि भारत में दो तरह की मानसूनी हवाऐ पाई जाती हैं। एक तो उत्तर पूर्वी मानसून और दूसरा दक्षिण पश्चिमी मानसून। उत्तर पूर्वी मानसून भारत के तमिलनाडु के कोरोमंडल तट ठंडी के दिनों में वर्षा करता हैं।

दक्षिण पश्चिमी मानसून लगभग अरब सागर एवं बंगाल की खाड़ी से होते हुए लगभग पूरे भारत में वर्षा करता हैं, जिसके कारण भारत को मानसूनी जलवायु वाला देश कहा जाता हैं।

भारतीय जलवायु को प्रभावित करने वाले कारक

जलवायु को प्रभावित करने वाले कई कारक हो सकते हैं। इसलिए आपकी और अच्छी समझ बनाने के लिए भारत की जलवायु को प्रभावित करने वाले कारक नीचे दिए गए हैं।

स्थिति और अक्षांशीय विस्तार

भारत उत्तरी गोलार्द्ध में स्थित हैं और कर्क रेखा भारत के बीचों बीच से गुजरती हैं, जोकि भारत को उष्णकटीबंधीय वाला क्षेत्र बनाती हैं। भारत का वुषुवत रेखा के करीब होने के कारण यहाँ का तापमान सालभर उच्च रहता हैं।

समुद्र से दूरी

भारत का दक्षिणी भाग तीनों तरफ से समुद्री जल से घिरा होने के कारण यह एक प्रायद्वीपीय देश बन जाता हैं। इसके पश्चिम में अरब सागर, दक्षिण में हिंद महासागर तथा पूर्व में बंगाल की खाड़ी स्थित हैं। इन तीनों सागरों का भारत की जलवायु को प्रभावित करते हैं।

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    हिमालय पर्वत श्रेणी

    भारत के उत्तर में स्थित विशाल हिमालय पर्वत भारतीय जलवायु में एक महत्वपूर्ण भमिका निभाता हैं। चूँकि हिमालय पर्वत जम्मू कश्मीर से लेकर पूर्व में हिमाचल प्रदेश तक फैला हुआ हैं। यह भारत को शेष एशिया से अलग करने का काम करता हैं।

    हिमालय पर्वत के उत्तर में स्थित होने के कारण साइबेरिया और चीन के क्षेत्र से आने वाली आर्द्र हवाऐं हिमालय को पार नहीं कर पाती। जिसके कारण भारत में वास्तविक शीत ऋतु नहीं हो पाती। वहीं दक्षिणी पश्चिम मानसून की बंगाल की खाड़ी शाखा जब उत्तर भारत के मैदानी क्षेत्र से होती हुई हिमालय पर्वत से टकराती हैं, तो वह पूरे उत्तर भारत में वर्षा करती हैं।

    हिमालय पर्वत एक तरह से जलवायु विभाजक का कार्य करता हैं।

      भू आकृति (भारत की स्थलाकृति)

      भारत की भू आकृति भी भारतीय जलवायु को प्रभावित करती हैं, जिसमें भारत के मैदान, पठार, पहाड़ एवं रेगिस्तान आते हैं। उदाहरण के लिए पश्चिमी घाट (सहयाद्रि) के पूर्व में और अरावली पर्वत के पश्चिम में अपेक्षाकृत कम वर्षा होती हैं।

        मानसूनी हवाएं

        भारतीय जलवायु को अक्सर मानसूनी हवाएं भी प्रभावित करती हैं, जिसमें मानसूनी हवाओं में नमा अर्थात आर्द्रता, गति एवं दिशा का महत्वपूर्ण योगदान देखा जाता हैं। इनमें से कोई भी एक कारण की वजह से ये हवाएं भारतीय जलवायु को प्रभावित कर सकती हैं।

          एल नीनो

          एल नीनो एक संकरी समुद्री जल धारा हैं, जोकि दिसंबर के महीने में कभी-कभी दक्षिणी अमेरिका के पेरू तट से कुछ दूरी पर दिखाई देती हैं। इसका प्रभाव अक्सर भारतीय जलवायु पर देखा जाता हैं। एल नीनो के कारण उष्णकटीबंधीय क्षेत्रों में या तो बहुत अधिक बाढ़े आती हैं, या फिर बहुत अधिक सूखा पड़ता हैं।

          पश्चिमी विक्षोभ तथा उष्ण कटिबन्धीय चक्रवात

          पश्चिमी विक्षोभ एक शितोष्ण चक्रवात हैं। जिसका जन्म भूमध्य सागर में होता हैं। पश्चिमी विक्षोभ यूरोप में भूमध्य सागर के ऊपर जन्म लेने के बाद यह शितोष्ण चक्रवात पूरब की ओर दिशा लेता हैं। जोकि भारत में प्रवेश कर जाता हैं। यह भारत के पश्चिमोत्तर भाग पर वर्षा करता हैं, जोकि गेहूँ की खेती के लिए बहुत ही लाभदायक होती हैं।

          उष्णकटीबंधीय चक्रवात वास्तव में बंगाल की खाड़ी में उठते हैं, जोकि भारत के तमिलनाडू में कोरोमंडल तट पर भारी वर्षा करते हैं, पश्चिमी विक्षोभ और उष्णकटीबंधीय चक्रवातों भी भारत की जलवायु को प्रभावित करते हैं।

          दक्षिण पश्चिमी मानसून

          दक्षिण पश्चिमी मानसूनी हवाऐं भारत में ग्रीष्म ऋतु में चलती हैं। ग्रीष्ण ऋतु के शुरू होने से पहले ही पश्चिमौत्तर भारत में अंत: उष्णकटिबंधीय अभिसरण क्षेत्र (ITCZ) विकसित होने लगता हैं। मई तक आते आते यह बहुत ही शक्तिशाली हो जाता हैं। जिसके चलते दक्षिण गोलार्द्ध हिंद महासागर की आर्द्रता वाली पवनों को अपनी तरफ खींच लेता हैं, साथ ही दक्षिण पूर्वी व्यापारिक पवनों को भी अपनी तरफ खींच लेता हैं।

          जब दक्षिण पूर्वी व्यापारिक पवने विषुवत रेखा को पार करके भारत में प्रभावित होने लगती हैं, तो इसे ही दक्षिण-पश्चिम मानसून (South west monsoon) कहां जाता हैं। दक्षिण पश्चिमी मानसून भारत के दक्षिण पश्चिम दिशा से बहकर आता हैं। इसलिए इसका यह नाम रखा गया। दक्षिण पश्चिमी मानसून हवाऐं ग्रीष्म ऋतु में हिंद महासागर से बहकर आती हैं। भारत में 90% वर्षा दक्षिण पश्चिमी मानसून से ही होती हैं। द.प. मानसून ही पूरे भारत में वर्षा करता हैं।

          दक्षिण पश्चिमी मानसून जब विषुवत रेखा से भारत की तरफ बहता हैं, तो यह भारत में दों शाखाओं में बँट जाता हैं, क्योंकि भारत प्रायद्वीपीय आकार का हैं। जिसके कारण यह दो शाखाओं में विभाजित हो जाता हैं। दक्षिण पश्चिमी मानसून एक तो अरब सागर की शाखा तथा दूसरी बंगाल की खाड़ी की शाखा में बँट जाता हैं।

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          अरब सागर की शाखा

          दक्षिण पश्चिमी मानसून की अरब सागर शाखा सबसे पहले केरल के मालाबार तट पर पश्चिमी घाट पर्वत से टकराकर 1 जून को भारी वर्षा करती हैं। इसके बाद अरब सागर शाखा पूरे पश्चिमी तटीय मैदान पर वर्षा करती हैं। अरब सागर शाखा द्वारा गुजरात से लेकर कन्याकुमारी तक पूरे तटीय मैदान पर वर्षा प्राप्त होती हैं।

          जब 1 जून को अरब सागर शाखा मालाबाद तट पर वर्षा करती हैं, तो इस घटना को मानसून प्रस्फोट/मानसून धमाका कहते हैं। भारत में दक्षिणी पश्चिमी मानसून द्वारा होने वाली वर्षा मुख्यत: स्थलाकृतियों द्वारा निर्धारित होती हैं, अर्थात पहाड़ियों द्वारा निर्धारित होती हैं।

          इसका मतलब यह हुआ कि जहाँ पर भी पहाड़ियाँ हैं, वहाँ पर हवायें उन पहाड़ियों से टकराकर उनके ढालों पर अधिक वर्षा करती हैं। दक्षिणी पश्चिमी मानसून जब पहाड़ियों से टकराता हैं, तो हवायें पहाड़ों के ढाल के सहारे ऊपर उठती चली जाती हैं तथा ऊपर उठने के क्रम में हवा के तापमान में कमी आ जाती हैं, तो इसे हम एडियाबेटिक तापह्रास कहते हैं।

          एडियाबेटिक तापह्रास के कारण हवा के तापमान में इतनी कमी आ जाती हैं, कि हवा अपनी सारी नमा जल के रूप में पहाड़ ढाल पर छोड़ देती हैं। इसे हम पर्वतीय वर्षा कहते हैं।

          द.प. मानसून द्वारा पश्चिमी तटीय मैदान में सबसे ज्यादा वर्षा मालाबार तट पर होती हैं। दक्षिण पश्चिम मानसून की अरब सागर शाखा सबसे पहले पश्चिमी घाट से केरल में टकराती हैं। जिसके कारण केरल के मालाबार तट पर वर्षा होती हैं। परिणामस्वरूप केरल में 1 जून से 15 सितम्बर तक वर्षा होती रहती हैं।

          दक्षिण पश्चिमी मानसून के द्वारा पश्चिमी घाट पर होने वाली वर्षा दक्षिण से उत्तर की ओर होती हैं। जिसके चलते प.घाट के मुकाबले महाराष्ट्र में कम वर्षा होती हैं। अरब सागर शाखा प. तटीय मैदान पर वर्षा करने के बाद यह नर्मदा और तापी नदियों की घाटी में प्रवेश कर जाती हैं और आगे जाकर यह अमरकण्ठक पहाड़ी तक वर्षा करती हैं।

          अरब सागर शाखा उत्तर में प्रवाहित होते हुए गुजरात की गिर और माण्डव पहाड़ियों से टकराकर सौराष्ट्र क्षेत्र में वर्षा का कारण बनती हैं। जिसके चलते गिर और माण्डव पहाड़ियों पर हरे भरे जंगल पाये जाते हैं।

          इसके पश्चात यह गुजरात से होते हुए अराबली पर्वत की गुरू शिखर चोटी से टकराकर राजस्थान के माउन्ट आबू में वर्षा करती हैं। अरब सागर शाखा पूरे राजस्थान में वर्षा नहीं करती हैं, क्योंकि हम और आप सभी जानते हैं, कि राजस्थान में कोई अवरोधक या कोई पहाड़ी मौजूद नहीं हैं, जिसके चलते अरब सागर शाखा द्वारा राजस्थान में वर्षा सीधे निकल जाती हैं।

          बंगाल की खाड़ी की शाखा

          जब मानसूनी पवनें विषुवत रेखा से भारत की ओर प्रवाहित होती हैं, तो भारत के प्रायद्वीपीय भाग से टकराकर दो भागों में बँटती हैं. अरब सागर शाखा और बंगाल की खाड़ी की शाखा। अरब सागर शाखा तो पं. घाट से टकराकर अपनी नमी पं. घाट के समानांतर गिरा देती हैं, लेकिन बंगाल की खाड़ी की शाखा से पूर्वी घाट का ज्यादा ऊँचा न होने के कारण बंगाल की खाड़ी की शाखा इसके समानान्तर उत्तर की ओर प्रवाहित हो जाती हैं।

          बंगाल की खाड़ी की शाखा पूर्वी घाट के समानान्तर उत्तर की ओर प्रवाहित होते हुए सबसे पहले मेघालय के शिलॉग पठार से टकराती हुई गारो, खासी, जयंतिया पहाड़ियों पर वर्षा करती हैं। खासी पहाड़ी पर स्थित चेरापूँजी और मासिनराम में 1080 सेमी से भी अधिक वार्षिक वर्षा होती हैं। मासिनराम दुनिया में सर्वाधिक वार्षिक वर्षा प्राप्त करने वाला स्थाल हैं।

          इसके बाद यह सूरमा घाटी से होते ब्रह्मपुत्र नदी की घाटी में प्रवेश करती हैं। इस घाटी में तापवृद्धि होने के कारण हवाओं की कुछ नमी कम हो जाती हैं। जिसके चलते इस घाटी में अपेक्षाकृत कम वर्षा होती हैं।

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          बंगाल की खाड़ी की शाखा शिलांग के पठार से टकराकर हुगली नदी की घाटी में प्रवेश कर जाती हैं। हुगली नदी की घाटी से होती हुई यह कलकत्ता, पटना, इलाहाबाद, कानपुर, होते हुए दिल्ली तक पहँच जाती हैं।

          बंगाल की खाड़ी की शाखा की नमी उत्तर भारत के मैदान तक आते आते बहुत ही कम हो जाती हैं, जिसके चलते कलकत्ता में अधिक और दिल्ली में अपेक्षाकृत कम वर्षा होती हैं। बंगाल की खाड़ी की शाखा का अंतिम स्थल दिल्ली हैं, जहाँ इस शाखा द्वारा वर्षा की जाती हैं।

          जब ये हवाऐं आगे चलती हैं, तो राजस्थान में स्थित अरावली पर्वत से टकराती हैं। जिसके बावजूद राजस्थान में बंगाल की खाड़ी की शाखा द्वारा वर्षा होनी चाहिए, लेकिन वर्षा नहीं होती हैं, क्योंकि अरावली पर्वत तक आते आते बंगाल की खाड़ी की शाखा की सारी आर्द्रता खत्म हो जाती हैं। और राजस्थान एक निम्न दाब वाला क्षेत्र हैं, यहाँ की भूमि अत्यधिक गर्म जिसकी वजह से यहाँ तक हवाऐं आते आते गर्म हो जाती हैं। जिसके चलते यहाँ वर्षा नहीं हो पाती हैं।

          Bharat Ki Jalvayu Kaisi Hai FAQs

          भारत की जलवायु कौन सी है?

          भारत एक उष्णकटीबंधीय मानसूनी जलावायु वाला देश हैं। भारत में द.प. मानसून द्वारा लगभग 90% पर वर्षा होती हैं।

          भारत की जलवायु को मानसूनी जलवायु क्यों कहा गया है?

          भारत की जलवायु को मानसूनी जलवायु इसलिए कहां जाता हैं, क्योंकि भारत में मानसूनी जलवायु में मौसम के अनुसार हवाओं की दिशाओं में परिवर्तन होता हैं। जिसके कारण ग्रीष्ण ऋतु में हवाऐं समुद्र से स्थल की ओर एवं शीत ऋतु में हवाऐं स्थल से समुद्र की ओर प्रवाहित होती हैं।

          भारत की जलवायु की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता कौन सी है?

          भारत की जलवायु एक ऋतु से दूसरी ऋतु में और एक स्थान से दूसरे स्थान पर तापमान व वर्षा की मात्रा में काफी अंतर पाया जाता हैं। इसी के साथ अत्यधिक प्रादेशिक भिन्नता भी पाई जाती हैं।

          भारत में सबसे ज्यादा वर्षा कहां होती है?

          भारत में सबसे ज्यादा वर्षा मेंघालय के मासिनराम में होती हैं। यहाँ लगभग 1080 सेमी से भी अधिक वार्षिक वर्षा होती हैं।

            आज आपने क्या सीखा

            हमने आज की इस पोस्ट के माध्यम से भारत की जलवायु कैसी हैं? (Bharat Ki Jalvayu Kaisi Hai), मानसून और जलवायु में अंतर, जलवायु कितने प्रकार की होती है, भारतीय जलवायु की विशेषताएँ, भारत में कितने प्रकार की जलवायु पाई जाती है, जलवायु परिवर्तन क्या है कारण और प्रभाव, उत्तर प्रदेश की जलवायु कैसी हैं? तथा भारत की जलवायु को क्या क्या कहा जाता हैं के बारे में विस्तार से जाना, जोकि आपकी परीक्षा की दृष्टि से उपयोगी साबित हो सकते हैं।

            उम्मीद हैं, कि आपको आज की ये जानकारी भारत की जलवायु कैसी है?, प्रकार तथा प्रभावित करने वाले कारक (Bharat Ki Jalvayu Kaisi Hai) से जुड़ी इंफोर्मेशन पसंद आयी होगी। अगर आपको हमारे द्वारा किया गया प्रयास पसंद आया तो इस पोस्ट को अपने दोस्तों के साथ शेयर कीजियेगा ताकि वो भी जान सकें कि Bharat ki Jalvayu Kaisi Hai

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